भोपाल शहर में वर्ष 2015 में बाघ की दस्तक और उसके रेस्क्यू के बाद वन प्राणी मुख्यालय ने डीएनए बेस रिसर्च शुरू कराई। संस्थान के वन्य प्राणी सेक्शन के सीनियर रिसर्च अफसर डॉ. मयंक वर्मा एवं टीम ने स्टडी ऑन टाइगर प्रजेंस एंड देयर डिसपर्सल मूवमेंट इन रातापानी, खियनी लैंड स्कैप प्रोजेक्ट में रिसर्च की है। बाघों की विष्ठा के 192 सैंपल की टेस्टिंग नेशनल सेंटर फॉर बॉयोलाजिकल साइंस बेंगलूरुभेजी गई हैं। भोपाल के पास पहाडिय़ों पर एक बाघिन एवं दो शावक के साक्ष्य मिले हैं।
विंध्य पहाड़ी से घिरा है भोपाल
भोपाल शहर दक्षिण, उत्तर और पूर्व से विंध्य रेंज की 300 से 650 मीटर ऊंची पहाडिय़ों से घिरा है। इन पहाडिय़ों पर बाघों को अच्छा हैबीटेट मिल रहा है। जलस्रोत और गुफाए हैं। जहां जलस्रोत नहीं है, वहां गर्मी में टैंकर से पानी पहुंचाया जाता है। इस क्षेत्र में नीलगाय और अन्य वन्य प्राणी हैं। यही कारण है कि बाघ शिकार के लिए शहर की ओर रुख नहीं करते। भोपाल से 70 किमी के दायरे में 35 से अधिक बाघों की संभावना है। इसमें रायसेन की रातापानी और देवास की खियोनी सेंक्चुरी के बाघ भी हैं। सेकेंड राउंड की डीएनए रिपोर्ट एवं कैमरा टै्रप की रिपोर्ट में सभी बाघों का कुनबा स्पष्ट होगा।
डीएनए रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी
रातापानी, खियनी सेंक्चुरी के रिसर्च प्रोजेक्ट में बाघों के साक्ष्य मिले हैं। सेकेंड राउंड की डीएनए रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद फाइनल रिपोर्ट तैयार होगी। आबादी एवं बाघ संरक्षण के लिहाज रिपोर्ट महत्वपूर्ण है।
– ओपी तिवारी, अपर संचालक, राज्य वन अनुसंधान संस्थान