एजेंट के ऑफर पर हम ऑनलाइन पेमेंट करते हैं, तो उसी समय इन हैकरों के पास हमारे कार्ड के संबंध में सारी जानकारी चली जाती है। वे अन्य हैकर्स को डाटा बेच देते हैं। फिर वे एक ऐप के माध्यम से खाते को हैक कर लेते हैं। हैक करने के बाद लोगों के खातों से लाखों रुपए निकाल लेते हैं।
हैकर कार्ड को हैक कर उसकी डिटेल डार्क नेट पर डाल देते हैं। इसके बाद इसकी कीमत तय होती है। 6 से 10 डॉलर तक क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की जानकारी बिकती है। जिसके एकाउंट में अधिक राशि होगी, उसकी कीमत 10 डॉलर तक होगी। जिसके एकाउंट में रुपए कम होंगे, उसकी कीमत 6 डॉलर के आसपास रहेगी। डार्कनेट पर कीमत भले ही डॉलर में तय होती है, लेकिन रुपए का आदान-प्रदान बिटकाइन में होता है। ऐसे में साइबर पुलिस को ऐसे अंतरराष्ट्रीय गिरोह तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
इंदौर साइबर एसपी जितेंद्र सिंह ने बताया कि डार्क नेट पर क्रेडिट और डेबिट कार्ड के चार अंक दिखते हैं। कीमत 6, 8 और 10 डॉलर तय रहती है। हैकर ऐप में चार अंकों का नंबर डाल देते हैं। इसके बाद कार्ड की डिटेल नंबर, नाम और एक्सपायरी डेट सहित अन्य डाटा हैकरों के पास जाता है। वे बिटकाइन में कार्ड को खरीद लेते हैं और इंटरनेशनल वेबसाइट के माध्यम से खाते से राशि निकाल लेते हैं। वेबसाइट में ओटीपी नंबर की भी जरूरत नहीं पड़ती है।
दो दिन पहले भोपाल साइबर पुलिस ने एकाउंट हैक कर ऑनलाइन बिल पेमेंट करने वाले अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश किया था। इंदौर की महिला सहायक प्रोफेसर की शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई की। महिला प्रोफेसर ने छूट के लालच में बिल जमा किया। हैकरों के पास उनके कार्ड की जानकारी पहुंची। उनके पास ओटीपी का मैसेज आया, लेकिन जब तक वे कुछ समझ पातीं तब तक दूसरा मैसेज खाते से रुपए निकलने का था। हैकरों ने इंटरनेशनल ऐप का उपयोग किया।
राजेश भदौरिया, एसपी साइबर क्राइम भोपाल