सरकार के आदेश के खिलाफ मप्र हाईकोर्ट में लगी लगभग 12 याचिकाएं निरस्त हो चुकी हैं लेकिन प्लास्टिक मर्चेंट एसोसिएशन का दावा है कि सरकार ने अपने आदेश में सिर्फ 40 माइक्रॉन से कम मोटाइ के प्लास्टिक कैरीबैग का जिक्र किया है जबकि कार्रवाई के नाम बीएमसी-पीसीबी 50 और 60 माइक्रॉन का स्टॉक भी जप्त कर रहे हैं, जिसे रिसाइकल किया जा सकता है।
एसोसिएशन के मुताबिक शहर में अमानक पॉलीथिन इंदौर के रास्ते गुजरात की फैक्ट्रियों के सेल्समेन सीधे छोटे दुकानदारों और गुमटी वालों तक सप्लाई कर रहे हैं। इसमें प्रमुख रूप से सफेद रंग के कपड़े के नाम से प्रचारित कैरीबैग भी शामिल हैं जो प्लास्टिक दानों से तैयार किया जाता है। नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर इस घालमेल को पकडऩे में नाकाम हैं और उनकी कार्रवाई शहर के स्थापित प्लास्टिक विक्रेताओं तक सिमटी हुई है।
क्यों नहीं रुकती पन्नी की बिक्री पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से 40 माइक्रॉन और इससे ज्यादा मोटाई वाली पॉलीथिन का इस्तेमाल वैधानिक है लेकिन ये कीमत में ज्यादा और भारी होने की वजह एक किलो में कम संख्या में आती है। इधर 10 से 20 माइक्रॉन मोटाई की पन्नी सस्ते दाम पर एक किलो में काफी ज्यादा संख्या में मिल जाती है। छोटे दुकानदार, गुमटी और सब्जी बेचने वालों के बीच पतली पन्नी की खपत सबसे ज्यादा है। गुजरात की फैक्ट्रियों के सैल्समेन इंदौर के रास्ते माल मंगवाकर शहर में डायरेक्ट ऑर्डर लेकर सप्लाई करते हैं और एजेंसियां शहर के बड़े व्यापारियों तक सीमित बनी रहती हैं।
इंदौर की तर्ज पर सख्ती की जरूरत
भोपाल में प्रतिदिन 850 मीट्रिक टन कचरे की पैदावार हो रही है जिसमें 40 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक वेस्ट का है। बीएमसी के हॉकर्स डोर टू डोर कलेक्शन के दौरान प्लास्टिक कचरा निकालने वालों की ना पहचान करते हैं ना उन्हें प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं करने की हिदायत देते हैं। इंदौर नगर निगम ने इस मामले में सख्ती दिखाई है और पाइंट ऑफ कलेक्शन पर ही लोगों को प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से रोकते हैं।
भोपाल में प्रतिदिन 850 मीट्रिक टन कचरे की पैदावार हो रही है जिसमें 40 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक वेस्ट का है। बीएमसी के हॉकर्स डोर टू डोर कलेक्शन के दौरान प्लास्टिक कचरा निकालने वालों की ना पहचान करते हैं ना उन्हें प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं करने की हिदायत देते हैं। इंदौर नगर निगम ने इस मामले में सख्ती दिखाई है और पाइंट ऑफ कलेक्शन पर ही लोगों को प्लास्टिक का इस्तेमाल करने से रोकते हैं।
पॉलीथिन से ये नुकसान
आबादी- पॉलीथिन जलने पर डायऑक्सेन गैस छोड़ती है। इसके लगातार संपर्क में आने से व्यक्ति को फैफड़ों का कैंसर होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। पर्यावरण- पॉलीथिन कचरे में फैंकने और जलाने के बावजूद नष्ट नहीं होती है। इसमें मौजूद जहरीले रसायनिक तत्व मिट्टी की उर्वरक क्षमता को नष्ट कर देते हैं जिससे हरियाली हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।
जानवर- खुले में फेंके जाने वाले प्लास्टिक को खाने से जानवर इसे पचा नहीं पाते हैं। ये आंतों में फंसकर पशु को गंभीर रूप से बीमार कर देता है और दुधारू पशु हमेशा के लिए दूध देने में असक्षम बन सकते हैं।
आबादी- पॉलीथिन जलने पर डायऑक्सेन गैस छोड़ती है। इसके लगातार संपर्क में आने से व्यक्ति को फैफड़ों का कैंसर होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। पर्यावरण- पॉलीथिन कचरे में फैंकने और जलाने के बावजूद नष्ट नहीं होती है। इसमें मौजूद जहरीले रसायनिक तत्व मिट्टी की उर्वरक क्षमता को नष्ट कर देते हैं जिससे हरियाली हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।
जानवर- खुले में फेंके जाने वाले प्लास्टिक को खाने से जानवर इसे पचा नहीं पाते हैं। ये आंतों में फंसकर पशु को गंभीर रूप से बीमार कर देता है और दुधारू पशु हमेशा के लिए दूध देने में असक्षम बन सकते हैं।