उन दिनों खरसिया जैसा कस्बा राष्ट्रीय मीडिया के प्रतिनिधियों का अड्डा बन गया था। देश के सभी प्रमुख अखबारों के प्रतिनिधि यहां चुनाव कवरेज के लिए डेरा डाले हुए थे। कांग्रेस के सिंह विरोधी खेमे शुक्ल बंधु और मोतीलाल वोरा की कोशिश थी कि सिंह चुनाव हारें।
जूदेव को सिंह विरोधी खेमे से गुपचुप समर्थन मिल रहा था तो तेंदूपत्ता व्यापारी भी सिंह के खिलाफ थी। चूंकि, दिलीप सिंह जूदेव स्थानीय थे, इसलिए उद्योगपतियों, व्यापारियों और आदिवासियों के बीच उनका अच्छा प्रभाव था।
तेंदूपत्ता मजदूरों ने लगाई जीत पर मुहर
अजीत जोगी और अर्जुन सिंह प्रचार की आखिरी सभा को संबोधित करने जीप से जा रहे थे, तब उन्होंने जोगी से कहा कि वे तेंदूपत्ता व्यापार में बिचौलियों का दखल खत्म करने की घोषणा करेंगे।
अजीत जोगी और अर्जुन सिंह प्रचार की आखिरी सभा को संबोधित करने जीप से जा रहे थे, तब उन्होंने जोगी से कहा कि वे तेंदूपत्ता व्यापार में बिचौलियों का दखल खत्म करने की घोषणा करेंगे।
जोगी इससे सहमत नहीं थे, क्योंकि उनको आशंका था कि इससे तेंदूपत्ता व्यापारी एकजुट हो जाएंगे और उनको हराने के लिए दो दिन में जमीन आसमान एक कर देंगे। उनके हाथ से करोड़ों की आमदमी का जरिया छिन जाएगा। जोगी चाहते थे कि इसकी घोषणा चुनाव के बाद हो, लेकिन सिंह से कहा कि हर चीज में राजनीति नफा-नुकसान नहीं देखना चाहिए।
यहां लाखों-करोड़ों गरीब मजदूरों के शोषण का सवाल है। सिंह ने सभा में तेंदूपत्ता नीति बनाने का वादा किया। उनके खिलाफ तेंदूपत्ता व्यापारियों और विरोधियों की तमाम कोशिशों के बाद भी सिंह बड़े अंतर से चुनाव जीते।