शर्मा से नाराजगी नहीं थी, बेग के आकर्षण में फंसे मतदाता
70 का दशक आते तक शंकर दयाल शर्मा भोपाल की शान बन चुके थे। इसके बावजूद वे चुनावी जनसम्पर्क में तामझाम नहीं करते। छोटी सी कार में तीन-चार कार्यकर्ताओं के साथ निकल पड़ते थे। जिस भी मोहल्ले में शर्मा की गाड़ी रुकती तो लोग एक-दूसरे को आवाज लगाने लगते डॉक्टर साहब आ गए… और लोग जुटना शुरू हो जाते। शर्मा अपनी बात कहते, सबसे एक-एक कर मुलाकात करते। घरों में जाकर बड़ों का आशीर्वाद लेते और आगे बढ़ते जाते। धार्मिक कट्टरता या धर्म विशेष के प्रतिनिधि वाली छवि उनकी कभी नहीं रही। वे जितने हिंदुओं में लोकप्रिय थे, उतना ही दुलार उन्हें मुस्लिमों का भी मिलता। 1977 के मध्यावधि चुनाव में केन्द्र की नीतियों की नाराजगी थी, लेकिन शर्मा से नाराजगी कभी किसी की नहीं रही। इसलिए लोगों को यकीन था कि इंडियन नेशनल कांगे्रस की सीट पर लड़ रहे शर्मा को जनता एक बार फिर चुन लेगी। बाजियां लगाते कि सत्ता विरोधी लहर का असर यहां नहीं दिखेगा।
70 का दशक आते तक शंकर दयाल शर्मा भोपाल की शान बन चुके थे। इसके बावजूद वे चुनावी जनसम्पर्क में तामझाम नहीं करते। छोटी सी कार में तीन-चार कार्यकर्ताओं के साथ निकल पड़ते थे। जिस भी मोहल्ले में शर्मा की गाड़ी रुकती तो लोग एक-दूसरे को आवाज लगाने लगते डॉक्टर साहब आ गए… और लोग जुटना शुरू हो जाते। शर्मा अपनी बात कहते, सबसे एक-एक कर मुलाकात करते। घरों में जाकर बड़ों का आशीर्वाद लेते और आगे बढ़ते जाते। धार्मिक कट्टरता या धर्म विशेष के प्रतिनिधि वाली छवि उनकी कभी नहीं रही। वे जितने हिंदुओं में लोकप्रिय थे, उतना ही दुलार उन्हें मुस्लिमों का भी मिलता। 1977 के मध्यावधि चुनाव में केन्द्र की नीतियों की नाराजगी थी, लेकिन शर्मा से नाराजगी कभी किसी की नहीं रही। इसलिए लोगों को यकीन था कि इंडियन नेशनल कांगे्रस की सीट पर लड़ रहे शर्मा को जनता एक बार फिर चुन लेगी। बाजियां लगाते कि सत्ता विरोधी लहर का असर यहां नहीं दिखेगा।
मंच से बेग भाइयों और बहनों… कहते और बजने लगती तालियां
व हीं भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे युवा आरिफ बेग की कद-काठी से लेकर बोलने के लहजे में गजब का आकर्षण था। ऊंचे-पूरे बेग सुदर्शन चेहरे और व्यक्तित्व के धनी तो थे ही, उनके बोलने का अंदाज भी बेहद जुदा था। वे कमला पार्क के सामने से लेकर पुराने शहर के किसी भी चौराहे पर खड़े हो जाते लोग जुटने लगते। भाषण शुरू करते समय बेग अपने खास अंदाज में भाइयों और बहनों… कहते और वाक्य पूरा होते न होते तालियां बजने लगती। बातों ही बातों में 100-150 लोगों की भीड़ जमा हो जाती। बेग अपनी बात कहते और आगे बढ़ जाते और फिर किसी चौराहे पर मजमा सजा लेते। उनका आकर्षण ही कुछ ऐसा था,कि जनता बंधती चली गई। और जब नतीजे आए तो सब चौंक गए। देश में कांग्रेस के साथ भोपाल में शर्मा भी बेग के सामने चुनावी बाजी हार चुके थे, लेकिन दो साल बाद ही फिर चुनावों की नौबत आई और इस बार जनता ने फिर शर्मा को चुन लिया।
व हीं भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे युवा आरिफ बेग की कद-काठी से लेकर बोलने के लहजे में गजब का आकर्षण था। ऊंचे-पूरे बेग सुदर्शन चेहरे और व्यक्तित्व के धनी तो थे ही, उनके बोलने का अंदाज भी बेहद जुदा था। वे कमला पार्क के सामने से लेकर पुराने शहर के किसी भी चौराहे पर खड़े हो जाते लोग जुटने लगते। भाषण शुरू करते समय बेग अपने खास अंदाज में भाइयों और बहनों… कहते और वाक्य पूरा होते न होते तालियां बजने लगती। बातों ही बातों में 100-150 लोगों की भीड़ जमा हो जाती। बेग अपनी बात कहते और आगे बढ़ जाते और फिर किसी चौराहे पर मजमा सजा लेते। उनका आकर्षण ही कुछ ऐसा था,कि जनता बंधती चली गई। और जब नतीजे आए तो सब चौंक गए। देश में कांग्रेस के साथ भोपाल में शर्मा भी बेग के सामने चुनावी बाजी हार चुके थे, लेकिन दो साल बाद ही फिर चुनावों की नौबत आई और इस बार जनता ने फिर शर्मा को चुन लिया।