्रशहर में 1780 स्कूल बसें व पांच हजार से ज्यादा वैन हैं। आरटीओ के अभियान में बमुश्किल 800 बसों की जांच हो पाई थी। इनमें से भी ज्यादातर बिना नियमों के चलती पाई गई थीं।
आरटीओ को पता नहीं कौन चलाता है बस
स्कूलों में बसों के अलावा वैन से ही बच्चों को लाया ले जाया जाता है लेकिन प्रबंधन और आरटीओ को जानकारी नहीं। इनके ड्राइवर और कंडक्टर का पुलिस वैरीफिकेशन तक नहीं हो रहा।
वाहन के आगे और पीछे ‘स्कूल बसÓ लिखा हो
रियलिटी चैक: कई बसों पर स्कूल बस नहीं लिखा था। ऑटो, मैजिक और वैन में कोई संदेश नहीं थे
बस के पीछे स्कूल का नाम व दूरभाष अंकित हो
रियलिटी चेक : कई बसों में न नाम लिखा था और न ही टेलीफोन नंबर
भाड़े वाली बसों पर ‘स्कूल ड्यूटीÓ लिखा हो
रियलिटी चेक : अधिकतर बसों पर नहीं लिखा है। एक ड्राइवर ने कहा कि पहले लगाते थे, लेकिन चैकिंग नहीं होने पर निकाल दिया।
बस का रंग पीला होना चाहिए
रियलिटी चेक: कई रंगों में दिखी।
बस में अटेंडेंट हो
रियलिटी चेक : स्कूली बसों में अटेंडेंट थे, लेकिन एजेंसियों की गाडिय़ों में कोई अटेंडेंट नहीं दिखा।
अधिक बच्चे नहीं बिठा सकते
रियलिटी चेक : क्षमता से दोगुना से ज्यादा बच्चे भरे दिखे।
फस्र्ट एड बॉक्स अनिवार्य रूप से उपलब्ध हो
रियलिटी चेक: अधिकतर बसों में यह नहीं मिला, कई ड्रायवर को इसकी जानकारी भी नहीं थी।
बस में अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था हो
रियलिटी चेक : यह सुविधा भी सभी बसों व गाडयि़ों से नदारद थी.
बस में स्पीड गवर्नर लगा हो और स्पस्कूल बसों में ना तो सुरक्षा उपकरण हैं ना ही महिला अटेंडेंटीड 40 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा न हो
रियलिटी चेक: कुछ बसों में स्पीड गवर्नर थे, लेकिन छोटी गाडिय़ों में तो किसी को इसकी जानकारी ही नहीं है।
खिड़की की खिड़कियों पर ग्रिल और शीशा भी होना चाहिए
– बस के दरवाजे ठीक से बंद होते हैं और चलती बस के दरवाजा लॉक होना चाहिए