पृथ्वी पर एक प्रतिशत पानी पीने योग्य, सहेजा नहीं तो तरस जाएंगे
विश्व जल दिवस पर पत्रिका द्वारा आयोजित गोष्ठी में पानी के संरक्षण, संवर्धन पर खास जोर दिया गया। जल संरक्षण और पर्यावरण के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों ने बताया कि पृथ्वी पर एक प्रतिशत ही पानी पीने योग्य है, इसलिए इसे सहेजें।
पत्रिका की जल संरक्षण पर गोष्ठी में चर्चा करते लोग।
भिण्ड. अभी सजग नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ी शुद्ध पेयजल के लिए तरस जाएगी। नदियों, कुओं, सरावेरों एवं अन्य प्राकृतिक जल संरचनाओं को संवारने के लिए केवल सरकार के भरोसे न रहकर स्वयं जागरूक होना होगा। जल संरक्षण पर गौरी किनारे बिहारी पार्क में पत्रिका की गोष्ठी में चर्चा- कथन- भूजल का दोहन अंधाधुंध हो रहा है। जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। वैसे भी पृथ्वी पर एक प्रतिशत ही पानी पीने योग्य है। पत्रिका ने इस विषय पर जागरूकता के लिए अनुकरणीय पहल की है। पानी का महत्व सभी समझें। सुनील दुबे, पर्यावरणप्रेमी, भिण्ड। -जल संरक्षण और संवर्धन पर केवल सरकार के भरोसे न रहें। जो कार्य होते हैं, उनकी मॉनीटरिंग भी हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए। गौरी सरोवर पर कुछ काम ठीक हुआ है, इससे जल स्तर शहर का सुधरा है। हमें अन्य स्रोतों पर भी सजग होना होगा। शैलेंद्र सिंह सांकरी, एडवोकेट। -हमें गांव वाली संस्कृति पर लौटना होगा, आज बटन से पानी आ रह है, मेहनत से नहीं, इसलिए इसका महत्व नहीं पीढ़ी नहीं समझ रही है। पानी की बर्बादी भी बहुत हो रही है और उस अनुपात में संरक्षण नहीं हो पा रहा। कालीचरण पुरोहित, वरिष्ठ नागरिक। -घर-घर बोरिंग और पानी के दुरुपयोग पर सरकार को सख्त होना होगा। समूह जल प्रदाय योजनाओं पर फोकस करना चाहिए। पेड़ों की कटाई और पानी की बर्बादी हमें स्वयं रोकनी होगी। जल स्रोत पूजे जाते थे, आज नष्ट किए जा रहे हैं। रमेशबाबू शर्मा, सेवानिवृत्त बीईओ -जल एवं पर्यावरण संरक्षण पर आजकल चर्चाएं तो बहुत होती हैं, योजनाएं भी बहुत बनती हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन उस स्वरूप में नहीं हो पाता। मॉनीटरिंग पब्लिक को भी बढ़ानी होगी, जनता को सीधे इन प्रयासों से जोडऩा होगा। विजय दैपुरिया, सेवानिवृत्त न्यायिक कर्मचारी। -ग्रामीण संस्कृति में नदियों, कुओं, सरोवरों को पूजा जाता था। यह संस्कृति और इसका महत्व हमें भावी पीढ़ी को बताना होगा। लोग कुओं से पानी खींचते थे तो महत्व समझते थे, अब तो मोटर चलाने से पानी आ रहा है। सुरेशबाबू सोनी, सेवानिवृत्त शिक्षक। -जल संरक्षण एवं संवर्धन पर बहुत काम करने की जरूरत है। हर स्तर पर काम करने की जरूरत है। सरकार नए तालाब बनवा रही है, पुरानों का संरक्षण नहीं कर पा रही है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। रामदत्त शर्मा, जिला संयोजक, पेंशनर एसोसिएशन -जिन क्षेत्रों में पानी संकट है, वहां लोग इसका महत्व समझने लगे हैं। हमें अभी सहज मिल रहा है तो दुरुपयोग कर रहे हैं। सदुपयोग पर फोकस करना होगा और अपने बच्चों को भी यह समझाना होगा। अवधेश शर्मा, सेवानिवृत्त शिक्षक। -गांव में लोग 60 फीट गहरे कुएं से पानी रस्सी से खींचते थे, पसीना छूट जाता था इसलिए महत्व समझते थे। अब मशनी युग में इसे हम भूलते जा रहे हैं, जो कष्टप्रद हो रहा है। घरों में भी पानी के सदुपयोग फोकस करना होगा। गंगा सिंह भदौरिया, वरिष्ठ नागरिक। -नदियों को गंदा कर रहे हैं, उनका दोहन ज्यादा कर रहे हैं। पानी को बेकार बहने दिया जा रहा है, जिससे जल स्तर नीचे जा रहा है। अभी बेशक पानी संकट नहीं है, लेकिन मनमाना दोहन रुका नहीं तो हमें भी परेशान होना पड़ेगा। राधाकांत शर्मा, प्रवक्ता पेंशनर्स एसोसिएशन। -अपने जिले में ही गोहद से मौ और मेहगांव से मौ के बीच में कई गांवों में गर्मियों में पेयजल संकट हो जाता है। दो-तीन किमी दूर से पानी ढोना पड़ता है। यह स्थिति तेजी से गिरते जल स्तर के कारण यहां भी बन सकती है, इसलिए समय पर चेत जाएं। संत कुमार जैन, सेवानिवृत्त शिक्षक।
-चंबल और सिंध जैसी बड़ी नदियों मेंं भी तेजी से पानी कम हो रहा है। इसका कारण अवैध खनन और संरक्षण का अभाव है। हम स्वयं भी पानी के संरक्षण व संवर्धन पर लापरवाह हुए हैं, भावी पीढ़ी को जागरूक करना बेहद जरूरी है। राधेगोपाल यादव, खेल प्रशिक्षक।