वन विभाग ने पक्षियों की संख्या की गणना के लिए चावंडिया, गुरलां, राथलियास, लाखोला, पिवणिया, मेजा बांध, लड़की बांध, सरेरी बांध, उम्मेद सागर, आगूंचा तालाब व नाहर सागर को चिह्नित किया। यहां 5 से 10 जनवरी के बीच पक्षी गणना की गई। इसके लिए पक्षी विशेषेज्ञ डॉ. अनिल त्रिपाठी, डॉ. अश्विनीकुमार जोशी, महेश नवहाल, नरपत सिंह व बालकिशन नवहाल की मदद ली गई। राथलियास में पक्षियों की संख्या नहीं होने से इसके स्थान पर पोटलां तालाब में गणना की गई। आगूंचा तालाब व नाहरसागर में पानी नहीं होने से गणना नहीं हो सकी, जबकि मेजा व सरेरी बांध में पानी कम होने से पक्षी उम्मीद से कम मिले।
विभिन्न प्रजातियों के पक्षी गत वर्ष जून-जुलाई में मानसून सक्रिय नहीं होने से बारिश तंत्र कमजोर रहा। अधिकांश तालाबों में पानी कम आया, लेकिन चावंडिया, सांखड़ा व गुरलां तालाब एेसे रहे, जहां पानी का जल स्तर कम होने के बावजूद यहां बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य के चलते देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही सात समुंदर पार से पक्षी पहुंचे। इनमें ग्रेबेस, पैलिकन, कॉमोरट्स डाइटर, हेरोन्स, स्ट्रोक्स स्पूनबिल, फ्लैंमिगो, डक, सारस, साइरस रैलस व कूट प्रजाति, सॉर बड्र्स, कामन स्पाइन प्रजाति के पक्षी भी शामिल हैं।
विदेशी पक्षियों के डेरे पक्षी विशेषेज्ञ डॉ. अनिल त्रिपाठी बताते है कि चावंडिया, सांखड़ा व गुवारड़ी में राजहंस, सरपटी, हंसावर, सुर्खाब, हवासील पक्षी समूह में नजर आए। रूस, यूरोप के साथ ही मंगोलिया, बलूचीस्तान के रास्ते से भी कई विदेशी पक्षी यहां प्रवास पर पहुंचे। इनके कई समूह अभी यहां डेरा डाले हुए हैं।
की कड़ी मेहनत पक्षी गणना कार्य के लिए वन विभाग की टीम ने पक्षी विशेषज्ञों के साथ कड़ी मेहनत की। इस बार प्रवासी पक्षियों की संख्या अधिक रही। गत वर्ष पक्षी गणना के दौरान जिले में ३१११ पक्षी चिह्नित हुए थे। इस साल ये आंकड़ा 5226 के पार रहा।
ज्ञानचंद, उपवन संरक्षक, वन विभाग