छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के एकलौत शब्दभेदी बाण चलाने वाले धुनर्धर कोदू राम महज प्रसंग सुनकर निशाना साधने में माहिर थे। उनकी अद्भुत, विलक्षण विद्या देखकर लोग दांतों तले उंगली दबा देते थे। बाण चलाने से पहले उनके आंखों में पट्टी बांधकर लक्ष्य की दिशा परिवर्तित कर दी जाती थी। लोगों की आवाज सुनकर वे सैकड़ों कोस दूर लक्ष्य पर सटीक निशाना साध देते थे।
शब्दभेदी बाण चलाने वाले कोदू राम एक मंझे हुए कलाकार भी थे। छत्तीसगढ़ की पांरपरिक लोक कला नाचा-गम्मत में महिला का किरदार निभाकर वे दर्शकों को खूब गुदगुदाते थे। वे अंतिम समय पर कला की साधना में लीन रहे। उनके शब्दभेदी बाण चलाने की कला देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते थे।
शब्द भेदी बाण चलाने वाले कोदूराम की अद्भुत विद्या देखकर ओलंपिक तीरंदाज लिम्बाराम ने उनकी प्रशंसा की थी। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि भारत के तीरंदाजों को उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए । इस विधा के कारण उन्हें प्रदेश के साथ ही देश में विशेष ख्याति मिली। दूरदर्शन एवं अनेक चैनलों व विदेशी चैनलों के द्वारा भी उनकी इस बाण विद्या की वीडियोग्राफी की गई।
कोदूराम केवल बाण ही नहीं चलाते थे, वे लोकमंच के विलक्षण कलाकार भी थे। लगातार कई घण्टे वे झालम करमा दल के तगड़े युवा आदिवासी साथियों के साथ करमा नृत्य करते थे। उन्हें अंतिम समय तक चश्मा नहीं लगा था। पीत वस्त्रधारी, सन्यासी से दिखने वाले कोदूराम वर्मा का करमा दल देश के शीर्ष करमा नृत्य दल था। वहीं खंजरी पर कबीर भजन गाने वाले वे छत्तीसगढ के सिद्ध कलाकारों में से एक थे।