कार्यकर्ताओं के घर से पूड़ी-सब्जी तैैयार होती थी और प्रचार में लगे सभी कार्यकर्ताओं के अलावा पोलिंग बूथ में बैठने वाले एजेंट के भोजन की व्यवस्था होती थी। सब यह मान कर चलते थे कि उनके घर में चुनाव हो रहा है। उस समय जितेंद्र सिंह के नाम के कार्यकर्ता थे, जो काफी दौड़-धूप करते। मतदान के दिन अपने कार्यकर्ताओं को खाने की व्यवस्था करने के साथ-साथ सरकारी कर्मचारियों का भी ख्याल रखते थे, उन्हें चाय-नाश्ता भी पूछते थे।
मतदान के दिन को किसी त्योहार की तरह लेते। अपना वोट डालने के बाद घर-घर जाकर लोगों से पूछते थे कि उन्होंने मतदान किया या नहीं। उन्हें वोट डालने के लिए कहते थे। उनसे यह भी कहते थे कि किसी को भी अपना वोट देना, लेकिन वोट जरूर दीजिए। कुछ ऐसे लोग भी मिलते थे कि जिनका कहना होता था कि आपके विरोधी ने तो हमें इतना दिया है, आप कितना देंगे। हमारा वोट फोकट का नहीं है, जो हम दे दें। विशाल चंद्राकर ने अपना खेत बेच कर चुनाव लड़ा। अपने विरोधी प्रत्याशी कांग्रेस के फूलचंद बाफना को जमकर टक्कर देते चुनाव हार गए।