सत्र न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि भगवान के नाम पर दर्ज सपंत्ति का प्रबंधक कलक्टर है वह वाद में सीधे तौर पर पक्षकार ही नहीं है। ऐसी स्थिति में वाद को प्रथम तौर पर नामंजूर किया जाता है। महंत यज्ञानंद ने वाद में गिरधारी नगर निवासी संतोष महोबिया व छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा कलक्टर के खिलाफ प्रस्तुत किया था। @Patrika.यह फैसला सुनाए जाने से पहले अधिवक्ता नागेन्द्र यदु ने तर्क दिया था कि वर्तमान में किल्ला मंदिर न्यास का गठन हो चुका है। न्यास गठन के पहले उच्च न्यायालय से एक अन्य वाद पर फैसला आ चुका है कि मंदिर की संपत्ति भगवान के नाम पर है। ऐसी स्थिति में संपत्ति किसी अन्य के नाम हस्तातंरित नहीं हो सकती है।
वाद में वादी ने एक पृष्ठ में खसरा नंबर समेत मंदिर की संपत्ति का उल्लेख किया है जिसकी अनुमानित कीमत ३.४५ करोड़ होना बताया है। इसमें बायपास, किल्ला मंदिर के पीछे रिहायशी जमीन, जोगी गुफा और बोरई में कृषि भूमि शामिल है।
वादी ने न्यायालय को जानकारी दी थी कि मंदिर १८८५ में स्थापित किया गया था। मंहत सच्चिदानंद ब्रम्हचारी ने लक्ष्मीनारायण मंदिर की स्थापना की। वर्तमान में इसे किल्ला मंदिर के नाम से जाना जाता है। @Patrika. मंदिर का सर्वराकार ब्रम्हचारी होता है। वर्तमान में गुरुपिता महंत गौतमानंद के बाद वे ही गद्दी संभाल रहे हैं।
न्यायालय के निर्देश पर ही किल्ला मंदिर न्यास का गठन किया गया है। इस न्यास में यज्ञानंद ब्रम्हचारी को भी रखा गया था। @Patrika. वर्तमान में लगातार बैठक में अनुपस्थित रहने और न्यास के विरोध में कार्य करने के आरोप में उनको सर्वसम्मती से हटा दिया गया। इसकी सूचना भी सार्वजनिक कर दी गई।