निचले स्तर से किया जा रहा बदलाव
प्रबंधन धीरे-धीरे अफसरों को वह सब जिम्मेदारी दे रहे हैं, जो पहले कर्मी के जिम्मे होती थी। फिलहाल जूनियर अफसरों से इसकी शुरुआत की जा रही है। आने वाले समय में बड़े अफसरों को एेसी ही जिम्मेवारी संभालनी होगी। जिस विभाग को पहले एक मैनेजर या सीनियर मैनेजर रेंक का अधिकारी संभालता था, अब उस विभाग को डीजीएम स्तर के अधिकारी के हवाले कर दिए हैं।
चार्जमैन का काम संभाल रहे हैं अफसर बीएसपी में चार दशक तक चार्जमैन का काम सीनियर कर्मचारी ही किया करते थे। नए नीति अपनाने के बाद इस काम को प्रबंधन निचले स्तर के अधिकारियों से करवा रहा है। अफसरों की संख्या में बढ़ोतरी इस वजह से भी की गई है, जिससे काम को और जिम्मेदारी से किया जा सके। पहले हर १० कर्मचारी पर एक अफसर थे, अब हर ६ कर्मचारी पर एक अधिकारी हो गए हैं।
सहायक, स्टेनो, टाइपिस्ट सभी ठेका श्रमिक अधिकारियों को दिए जाने वाले सहायक स्टाफ में भी कटौती की जा रही है। पहले प्यून से लेकर फाइल लाने-ले जाने अलग-अलग स्टाफ होते थे। उनके रिटायर्ड होने के बाद नई भर्ती नहीं की गई। इसी तरह कुछ वीआर ले लिए। प्रबंधन ने अफसरों के स्टाफ मंें से सहायक, स्टेनो, टाइपिस्ट जैसे कर्मियों को हटा दिया है। अब अधिकारी ठेका मजदूरों से यह काम करवा रहे हैं। वहीं गोपनीय जानकारी सार्वजनिक नहीं होनी चाहिए, यह कहते हुए अधिकारियों को कम्प्यूटर पर बैठा दिए हैं। वे अब खुद ही कम्प्यूटर ऑपरेट भी कर रहे हैं।
कम कर्मियों से अधिक उत्पादन लेने की योजना
बीएसपी में रिटायर्ड हो रहे १०० कर्मियों के बदले कॉर्पोरेट ऑफिस २० नए कर्मचारियों को भर्ती करने की बात कर रहा है। वर्तमान में उतनी भी भर्ती नहीं हो रही है। कर्मियों के कमी का रोना हर विभाग के अधिकारी रो रहे हैं। प्रबंधन की मंशा है कि वे नई मशीनों को इसलिए लगवाए हैं, ताकि पचास फीसदी कर्मियों से १०० फीसदी उत्पादन लिया जा सके। इससे प्रबंधन कम खर्च में अधिक आय की राह पर आगे बढ़ेगा। मुनाफा बढ़ाने के लिए इससे बेहतर विकल्प नहीं है।
कर्मियों का काम करेंगे अफसर, देंगे ट्रेनिंग संयंत्र में नए प्लांट को चलाने के लिए अधिकारियों को भी पूरी तरह से प्रशिक्षित किया जाएगा। इससे कर्मचारी व अधिकारी दोनों ही संयंत्र को चलाने में सक्षम होंगे। कर्मियों के स्थान पर अब ठेका श्रमिकों का इस्तेमाल करने पर बल दिया जा रहा है। बीएसपी प्रबंधन इस नए कॉन्सेप्ट को अपनाने में बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं कर रहा है। यही वजह है कि इसका विरोध नहीं हो रहा है। नियमित कर्मियों की कमी को देखते हुए प्रबंधन के दबाव में काम करने वाले कर्मी अब प्रबंधन से सहायक के तौर पर ठेका श्रमिक की मांग कर रहे हैं।