@Patrika. उल्लेखनीय है कि जिला एवं सत्र न्यायालय ने आरोपी छन्नूलाल वर्मा को २५ जून २०१३ को फांसी की सजा दी थी। जिला न्यायालय के इस फैसले को हाईकोर्ट ने यथावत रखा था। हाईकोर्ट ने घटना को विरलतम से विरलत्तम माना और फांसी की सजा को यथावत रखा था। हाईकोर्टके इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। तीन सदस्य न्यायमूर्ति की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए आरोपी छन्नूलाल वर्मा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
@Patrika. तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश सीबी बाजपेयी ने तीन अलग अलग हत्या करने पर हत्या की धारा के तहत तीन बार फांसी की सजा सुनाई थी। इसके अलावा तीन अलग अलग व्यक्तियों पर प्राण घातक हमला करने पर हत्या का प्रयास की धारा के तहत तीन बार ७ साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने फैसले में कहा था कि जीवन एक ही है। मृत्यु दंड की संख्या अधिक होने पर भी एक साथ निष्पादित होंगे। ऐसे मृत्यु दंड के समग्रत: एक साथ निष्पादित होने की दशा में अन्य अधिरोपित सश्रम कारावास के दण्ड भी विधि अनुसार स्वयंमेव समाहित होंगे। मृत्युदण्ड के निष्पादन उपरान्त अन्य दम्डधिष्ट धाराओं में अधिरोति कारावास के दण्ड को स्वाभाविक रुप से भुगताया जाना संभव नहीं हो सकेगा, इसलिए अभियुक्त को गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए जब तक कि उसका प्राणान्त न हो जाए।
@Patrika. १९ अक्टूबर २०११ शाम ५ बजे छन्नूलाल वर्मा ने बोरिद निवासी आनंद राम के मकान में बल पूर्वक प्रवेश किया था। उसके हाथ में धारदार चाकू था। उसने सबसे पहले आनंद राम को चाकू से हमला कर हत्या की। इसके बाद आंनद राम की पत्नी फिरंतीन व बहू रत्ना साहू की हत्या की। हत्या करने के बाद खून से सने चाकू से आरोपी ने दुर्गा बंछोर के घर प्रवेश किया। उसने तत्कालीन जिला पंचायत सदस्य मीरा बंछोर, धन्नू व गेदलाल वर्मा पर प्राणघातक हमला किया। पुलिस ने न्यायालय को जानकारी दी थी कि आरोपी को दुष्कर्म की धारा के तहत जेल हो गई थी। जेल से रिहा होने के बाद उसने शिकायतकर्ता की हत्या और गवाहों के ऊपर प्राणघातक हमला किया है।
धारा ४५०- ५वर्षकारावास और १००० जुर्माना
धारा ५०६- ५ वर्ष कारावास और १००० जुर्माना
धारा ३०७ (तीन बार)- १० वर्षसश्रम कारावास और ५००० जुर्माना
धारा ३०२ (तीन बार)- फांसी की सजा
जानकारी के मुताबिक दुर्ग जेल में फांसी देने की सुविधा नहीं है। फांसी रायपुर सेंट्रल जेल में दी जाती है। हाईकोर्ट द्वारा सजा को कन्फर्म करने के बाद स्थानीय जेल प्रशासन आरोपी को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रायपुर सेंट्रल जेल स्थानंतरित कर दिया जाता है। फांसी की सजा होने के बाद आरोपियों को अलग सेल में रखा जाता है।@Patrika
ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बदलने के लिए लॉ कमीशन के गाइडलाइन और बच्चन सिंह विरुद्ध पंजाब स्टेट एवं मच्छी सिंह विरुद्ध पंजाब स्टेट के फैसले को आधार बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला २८ नवंबर २०१८ को सुनाया।