चिकित्सक ने कहा कि अभी प्लेटलेट एक लाख 10 हजार है। इस वजह से अभी घर लेकर जाओ, बुखार लगे तो पैरासिटामाल टेबलेट खिला देना। मंगलवार को लेकर आना, फिर एक बार जांच करेंगे। मंगलवार को वह बेटी को लेकर फिर हॉस्पिटल पहुंचे। तब चिकित्सकों ने कहा कि बुधवार को लेकर आना, तब जांच करेंगे।
पिता ने बताया कि मंगलवार व बुधवार के दरमियानी रात करीब दो बजे बेटी दर्द से रो पड़ी। सुबह चार बजे तक उसे घर में संभालकर रखा। बुधवार की सुबह ४ बजे सेक्टर-9 हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। जहां चिकित्सकों ने बी-वन वार्ड में दाखिल कर दिया।
मेघा ने अपने एकलौते भाई नागेश साहू (इंजीनियर) को फोन कर बताया कि शरीर में दर्द बहुत हो रहा है। बहन की आवाज से ही भाई को उसके दर्द का एहसास हो गया था। वह बेंगलुरू से फ्लाइट में सवार होकर रायपुर और फिर घर पहुंचा।
मेघा के भाई ने बताया कि गुरुवार को सुबह १० बजे चिकित्सक राउंड में आया और एक इंजेक्शन देने कहा। नागेश से चिकित्सक से कहा कि रेफर कर देते हैं रायपुर ले जाओ। भाई ने कहा आईसीयू में शिफ्ट कर दो। इस पर चिकित्सक ने कहा कि आईसीयू में बेड खाली नहीं है। भाई ने सीएमओ को फोन किया। तब चिकित्सक ने कहा आईसीयू में एक बेड खाली हुआ है।
पिता ने बताया कि खाली हो चूके सिलेंडर बदलने दूसरे लेकर आए और उसे बदलने के लिए पहले से लगे मॉस्क को निकाल दिया। तब बेटी गोद पर ही थी, उसने आंख पलटा दिया। बेटी को देखकर यह समझ चुका था, कि वह जा चुकी है। इसके बाद भी अकेला बेटा उसे जल्दी से स्टे्रचर पर उठाकर डाला, चिकित्सक खड़े होकर देख रहे थे। बेटा भागते हुए आगे बढ़ रहा था, साथ में नीला कपड़ा पहने सफाई कर्मचारी सिलेंडर लेकर चल रही थी।
बेटी को चार घंटे तक आईसीयू में रखा गया, इस बीच दो बार परिवार से काउंसलिंग की, जिसमें बताया कि बचाने की कोशिश कर रहे हैं। ४ बजे बताया कि बेटी की मौत हो गई। यह बीएसपी का सेक्टर-9 हॉस्पिटल है। जिस बीएसपी में खून-पसीना बहाकर काम कर रहे हैं। नागेश ने बताया कि उसकी दो बहन है, एक का विवाह नागपुर में हुआ, दूसरी मेघा थी, मेघा ने एम कॉम तक पढ़ाई की थी।