शहर के जानकार बताते हैं कि मंदिर का जो स्वरूप वर्तमान में नजर आ रहा है वैसा नहीं था। पहले सिर्फ कुंड हुआ करता था। ऐसी मान्यता है कि कुंड का पानी कभी नहीं सूखता था। @Patrika. वर्तमान में कुंड का आकार छोटा हो गया है। कुंड के ऊपर टिन शेड लगा हुआ था। पुराने जमाने में लोग कुंड में ही जल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते थे।
लोग बताते हैं कि आदिवासी राजाओं के जमाने का है। शहर के अंतिम छोर में स्थित होने के कारण लोग सिर्फ दिन में ही पूजा-अर्चना करते थे। रात में अंधेरा होने के कारण लोग वहां जाने से डरते थे। धीरे-धीरे कुंड की प्रसिद्धि फैलने और आस्था बढऩे पर देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। @Patrika. प्रतिमा स्थापना के बाद आज से छह दशक पहले शहर के एक श्रद्धालु डेरहा राम यादव ने मंदिर निर्माण के लिए 50 हजार रुपए दान दिया था। मंदिर निर्माण में उनके बड़े योगदान को देखते हुए फिर ट्रस्ट का गठन हुआ। वर्तमान में मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित है।
इस मंदिर में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलन की शुरुआत 1975-76 में हुई है। इसके पहले सिर्फ एक ज्योतिकलश दोनों नवरात्रि में प्रज्ज्वलित की जाती थी। @Patrika.ज्योति कलश की शुरुआत आचार्य स्व. अभयराम द्विवेदी के मार्गदर्शन में शुरू हुआ था। वर्तमान में ज्योतिकलश की संख्या हजारों में पहुंच गई है। चैत्र और क्वांर नवरात्रि पर देश ही नहीं बल्कि विदेशों में बसे देवी के भक्त मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करवाते हैं।