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किस्सा छत्तीसगढ़ : दुर्ग जिले में पहली बार 1952 में कुथरेल विस सीट पर लगी थी चुनाव याचिका

locationभिलाईPublished: Nov 14, 2018 11:15:13 pm

विधान सभा 1952 के चुनाव के बाद मोहनलाल बाकलीवाल पिता प्रेमसुख बाकलीवाल ने चुनाव याचिका लगाई थी। याचिका में चुनाव के दौरान अनियमितता का आरोप लगाया गया था।

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किस्सा छत्तीसगढ़: दुर्ग जिले में पहली बार कुथरेल विस सीट पर लगी थी चुनाव याचिका

दुर्ग. दुर्ग ग्रामीण के रूप में उस समय दुर्ग से लगे ग्राम कुथरेल विधानसभा सीट हुआ करता था। दूसरे चुनाव में यह सीट भिलाई के रूप में परिसीमित हुआ। तब दुर्ग ग्रामीण सीट में कांग्रेस के मोहनलाल बाकलीवाल, समाजवादी पार्टी के दाउ त्रिलोचन सिंह, राम राज्य परिषद के लाल दशरथ सिंह, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के रंदुल, कम्युनिस्ट पार्टी के चंदूलाल और निर्दलीय उमेश सिंह उम्मीदवार थे। चुनाव में त्रिलोचन सिंह की जीत हुई थी और निकटतम प्रतिद्वंदी मोहनलाल बाकलीवाल सहित अन्य सभी हार गए थे। इस चुनाव के बाद मोहनलाल बाकलीवाल पिता प्रेमसुख बाकलीवाल ने चुनाव याचिका लगाई थी। याचिका में चुनाव के दौरान अनियमितता का आरोप लगाया गया था।
बाकलीवाल का आरोप था कि त्रिलोक ने तीन पम्पलेट बनवाए और बंटवाए थे
अधिवक्ता संजीव तिवारी ने बताया कि बाकलीवाल ने आरोप लगाया था कि त्रिलोचन सिंह ने मतदाताओं को मतदान बूथ तक लाने ले जाने के लिए गांव-गांव में वाहन की व्यवस्था की थी। बाकलीवाल का आरोप था कि प्रतिवादी त्रिलोक सिंह साहू ने मुनीर खान का ट्रक किराए से लिया और उससे गुंडरदेही, डंगनिया, अंडा और कुथरेल के पोलिंग बूथ पर मतदाताओं को लाने ले जाने के लिए प्रयोग में लाया गया। ट्रक को देवी सिंह नाम का ड्राइवर चला रहा था। इस तरह से उसने मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए चुनाव आचार संहिता के नियमों का उल्लंघन किया था। बाकलीवाल का आरोप था कि त्रिलोक ने तीन पम्पलेट बनवाए और बंटवाए थे। इनमें से दो पम्पलेट में बाकलीवाल के मारवाड़ी होने, शोषक वर्ग से होने, कालाबाजारी में लिप्त होने और परदेसिया होने के कारण वोट नहीं देने की दुर्भावनापूर्ण अपील की गई थी। त्रिलोक सिंग साहू के चुनाव आचार संहिता के अवैध एवं भ्रष्ट तरीके के प्रयोग के कारण चुनाव प्रभावित हुआ और इसके कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
याचिका इनके खिलाफ थी
त्रिलोक सिंह साहू पिता राम भरोसा ग्राम कुथरेल, लाल बसंत सिंह पिता ठाकुर निहाल सिंह ग्राम गुंडरदेही, चंदूलाल पिता लतेल ग्राम कुथरेल, उमेद सिंह पिता अमोली ग्राम भरदा, भोंदुल पिता टुकेल ग्राम खपरी, हरिहर प्रसाद पिता सीताराम ग्राम रनचिरई, रमऊ पिता कोंदा ग्राम खपरी के विरुद्ध चुनाव में अनियमितता का आरोप था।
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तब सुनवाई में जवाब दिया
त्रिलोक ने अपने बचाव में कहा कि बाकलीवाल का वाद विधि के अनुरूप नहीं है इसलिए यह चलने योग्य नहीं है। मुनीर खान के ट्रक को समान और मजदूरों के लिए किराए में त्रिलोक ने लिया था, उसमें वोटरों को नहीं ढोया गया है। पम्पलेट ना तो त्रिलोक ने नहीं उसके किसी एजेंट ने बंटवाया है। इस प्रकार से बाकलीवाल के निजी व्यक्तित्व पर किसी भी प्रकार का लांछन त्रिलोक ने नहीं लगाया है।
पहली चुनाव याचिका का परिणाम
इस याचिका की सुनवाई लंबे समय तक चली। बाकलीवाल आचार संहिता उल्लंघन को साबित नहीं कर पाए। याचिका खारिज हो गई। दुर्ग जिले के लिए यह पहली चुनाव याचिका थी। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत यह वाद प्रस्तुत किया गया था। इलेक्शन ट्रिब्यूनल ने चुनाव आयोग की नियुक्ति कर इस याचिका को ट्रायल के लिए धारा 103 के प्रावधानों के तहत निस्तारित किया था। इसकी इलेक्शन पिटीशन क्रंमांक 296 /1952 था। 15 नवंबर 1952 को हुए फैसले के अनुसार उस समय तक इलेक्शन ट्रिब्यूनल राजनंदगांव में प्रस्तुत चुनाव याचिकाओं में मेरिट पर डिसाइट यह पहली याचिका थी। जिसे रिपोर्टेबल रूप में भारत सरकार के गजट में प्रकाशित किया गया था। कमीशन में बतौर न्यायाधीश एस ए पांडा, जी डब्ल्यू चिपलुनकर और डीआर मंडलेकर थे।
बाकलीवाल कांग्रेस की टिकट से जीते
विधान सभा 1952 के पंचवर्षीय में ही मोहनलाल बाकलीवाल की किस्मत चमकी। हुआ यह कि दुर्ग विधानसभा के विधायक घनश्याम सिंह गुप्त जब निर्वाचित होकर मध्य प्रदेश विधानसभा पहुंचे तब वे चाहते थे कि वे दोबारा स्पीकर बनें, किन्तु उन्हें स्पीकर नहीं बनाया गया। इससे नाराज होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तब दुर्ग में मध्यावधि चुनाव हुआ। जिसमें मोहनलाल बाकलीवाल कांग्रेस की टिकट से जीते।
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