पीडि़त परिवार ने ईएफबीएस स्कीम का लाभ नहीं लिया। जिसके कारण उनको पति की मौत के बाद बेसिक व डीए भी नहीं मिला। परिवार बेटे की अनुकंपा नियुक्ति के लिए बालिग होने का इंतजार किए। मां ने बताया कि बेटा बालिग हुआ तो अनुकंपा नियुक्ति के लिए २९ जून २०१२ को प्रबंधन के पास गए। जहां उन्होंने कहा कि ६ माह के भीतर आवेदन करना था। देरी से आए हो नहीं मिलेगी अब नौकरी। इस पर परिवार ने २६ अक्टूबर २००९ को दिए हुए पत्र की कॉपी दिखाई।
बीएसपी के भर्ती विभाग ने इसके बाद पीडि़त परिवार को प्रयास करने की बात कहकर चक्कर लगवाया। पीडि़त परिवार ने बताया कि लगातार दफ्तर जाते रहे, लेकिन प्रबंधन अलग-अलग वजह बताकर लौटाता रहा। पीडि़ता ने बताया कि पूछने पर सोनम ने बताया कि तमाम दस्तावेज भर्ती विभाग को भेज दिया गया है। जब भर्ती विभाग से पूछा गया, तो वहां के विकास चंद्रा ने बताया कि कोई दस्तावेज नहीं मिला है। तीन साल तक वे इस विषय पर चक्कर लगाते रहे।
श्रमिक नेता उज्जवल दत्ता ने कहा कि बीएसपी प्रबंधन से कर्मियों का विश्वास धीरे-धीरे उठ रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के मसले पर प्रबंधन का रुख हमेशा परेशान करने वाला होता है। जिसकी वजह से परिवार कभी समाज, तो कभी न्यायालय का रुख करता है।
पीडि़ता ने कहा कि यह मालूम होता कि जिस बीमारी को सेल प्रबंधन ने पूरी तरह अनफिट में रखा है। इसके पीडि़त के जीने के दौरान ही आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है। तब भी प्रबंधन कर्मचारी की जान जाने के बाद भी नरम नहीं पड़ रहा है। अब मजबूरी में न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। इससे बेहतर होता कि शव को लेते ही नहीं।
पीडि़त परिवार ने श्रम विभाग का दरवाजा खटखटाया, तो वहां बीएसपी प्रबंधन व पीडि़त परिवार में सुलह नहीं हो सकी। तब डिप्टी सीएलसी ने इसे फेल कर ट्रिब्यूनल में केस ट्रांसफर किया।
इसके बाद पीडि़त परिवार ने आरटीआई के तहत प्रबंधन की ओर से इस मामले में क्या किया गया है, उसकी जानकारी मांगी। जहां साफ हुआ कि 5 मार्च 2013 को डीजीएम पर्सनल भर्ती पीपी वर्मा ने सेल के एजीएम समीप स्वरूप को पत्र लिखा। जिसमें पीडि़त परिवार को अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में क्लियरेंस मांगा। ५ जून २०१३ को एजीएम पर्सनल आरके शर्मा ने ईडी कॉरपोरेट ऑफिस को पत्र लिखा। इसके बाद एजीएम पर्सनल ने भी ईडी कॉरपोरेट ऑफिस को रिमांडर पत्र लिखा।