scriptBSP प्रबंधन की करतूत: नाबालिग बताकर अनुकंपा नियुक्ति देने से किया इनकार, बालिग होने पर गया तो कहा-देर कर दी | Bhilai steel plant recruitment sail, BSP Compassionate appointment | Patrika News

BSP प्रबंधन की करतूत: नाबालिग बताकर अनुकंपा नियुक्ति देने से किया इनकार, बालिग होने पर गया तो कहा-देर कर दी

locationभिलाईPublished: Feb 21, 2019 03:32:13 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

बीएसपी के एसएमएस-1 में काम करने वाले दिलीप कुमार पुरकैत को 2009 किडनी की बीमारी ने घेरा। प्रबंधन ने उनको सेक्टर-9 में स्टॉफ अटेडेंट के तौर पर काम दिया।

patrika

BSP प्रबंधन की करतूत: नाबालिग बताकर अनुकंपा नियुक्ति देने से किया इनकार, बालिग होने पर गया तो कहा-देर कर दी

भिलाई. बीएसपी के एसएमएस-1 में काम करने वाले दिलीप कुमार पुरकैत को 2009 किडनी की बीमारी ने घेरा। प्रबंधन ने उनको सेक्टर-9 में स्टॉफ अटेडेंट के तौर पर काम दिया। जहां सेहत बिगड़ी तो 26 अक्टूबर 2009 को डॉक्टरों ने परमानेंट अनफिट घोषित किया। इस पर उन्होंने बेटे को बदले में नौकरी देने आवेदन दिया। बीएसपी कर्मचारी की पत्नी ने बताया कि 6 फरवरी 2010 को पति की मौत हो गई। बेटे की उम्र उस समय महज 17 साल थी। आवेदन देने पर बीएसपी प्रबंधन ने कहा कि अभी नाबालिग है। जब बालिग होगा, तब नौकरी दी जाएगी।
नहीं लिया ईएफबीएस का लाभ
पीडि़त परिवार ने ईएफबीएस स्कीम का लाभ नहीं लिया। जिसके कारण उनको पति की मौत के बाद बेसिक व डीए भी नहीं मिला। परिवार बेटे की अनुकंपा नियुक्ति के लिए बालिग होने का इंतजार किए। मां ने बताया कि बेटा बालिग हुआ तो अनुकंपा नियुक्ति के लिए २९ जून २०१२ को प्रबंधन के पास गए। जहां उन्होंने कहा कि ६ माह के भीतर आवेदन करना था। देरी से आए हो नहीं मिलेगी अब नौकरी। इस पर परिवार ने २६ अक्टूबर २००९ को दिए हुए पत्र की कॉपी दिखाई।
तीन साल लगवाया चक्कर
बीएसपी के भर्ती विभाग ने इसके बाद पीडि़त परिवार को प्रयास करने की बात कहकर चक्कर लगवाया। पीडि़त परिवार ने बताया कि लगातार दफ्तर जाते रहे, लेकिन प्रबंधन अलग-अलग वजह बताकर लौटाता रहा। पीडि़ता ने बताया कि पूछने पर सोनम ने बताया कि तमाम दस्तावेज भर्ती विभाग को भेज दिया गया है। जब भर्ती विभाग से पूछा गया, तो वहां के विकास चंद्रा ने बताया कि कोई दस्तावेज नहीं मिला है। तीन साल तक वे इस विषय पर चक्कर लगाते रहे।
उठ रहा प्रबंधन से विश्वास
श्रमिक नेता उज्जवल दत्ता ने कहा कि बीएसपी प्रबंधन से कर्मियों का विश्वास धीरे-धीरे उठ रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के मसले पर प्रबंधन का रुख हमेशा परेशान करने वाला होता है। जिसकी वजह से परिवार कभी समाज, तो कभी न्यायालय का रुख करता है।
बेहतर होता नहीं लेते शव
पीडि़ता ने कहा कि यह मालूम होता कि जिस बीमारी को सेल प्रबंधन ने पूरी तरह अनफिट में रखा है। इसके पीडि़त के जीने के दौरान ही आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है। तब भी प्रबंधन कर्मचारी की जान जाने के बाद भी नरम नहीं पड़ रहा है। अब मजबूरी में न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। इससे बेहतर होता कि शव को लेते ही नहीं।
श्रम विभाग का खटखटाया दरवाजा
पीडि़त परिवार ने श्रम विभाग का दरवाजा खटखटाया, तो वहां बीएसपी प्रबंधन व पीडि़त परिवार में सुलह नहीं हो सकी। तब डिप्टी सीएलसी ने इसे फेल कर ट्रिब्यूनल में केस ट्रांसफर किया।
आरटीआई में मांगी जानकारी
इसके बाद पीडि़त परिवार ने आरटीआई के तहत प्रबंधन की ओर से इस मामले में क्या किया गया है, उसकी जानकारी मांगी। जहां साफ हुआ कि 5 मार्च 2013 को डीजीएम पर्सनल भर्ती पीपी वर्मा ने सेल के एजीएम समीप स्वरूप को पत्र लिखा। जिसमें पीडि़त परिवार को अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में क्लियरेंस मांगा। ५ जून २०१३ को एजीएम पर्सनल आरके शर्मा ने ईडी कॉरपोरेट ऑफिस को पत्र लिखा। इसके बाद एजीएम पर्सनल ने भी ईडी कॉरपोरेट ऑफिस को रिमांडर पत्र लिखा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो