भरतपुर को संभाग का दर्जा मिलने के बाद सरकार के स्तर पर सुविधाओं में इजाफा किया गया। इसमें नवनिर्मित ट्रैक पर कम्प्यूटराइज्ड ड्राइविंग ट्रायल की सुविधा भी परिवहन कार्यालय में शामिल की। इसे देखते हुए वर्ष 2017 निर्माण एजेंसी आरएसआरडीसी को 137.60 लाख रुपए में कार्य करने की स्वीकृति मिली।
इसमें एच आकार का ट्रैक, घुमावदार दो ट्रैक, वाहन को लेकर ऊपर-नीचे उतरना, कंट्रोल रूम, ट्रायल वालों का वेटिंग एरिया, पानी निकासी के लिए भूमिगत टैंक आदि का निर्माण वर्ष 2018 में पूरा कर सुपुर्द कर दिया, जिस पर 86.17 लाख रुपए खर्च हुए। शेष बचत राशि में ट्रैक के चारों ओर बाउण्ड्रीबाल बनाने का कार्य जारी है।
बताते है कि किसी प्राइवेट कंपनी को सरकार ने यहां कम्प्यूटराइज्ड टै्रक सिस्टम लगाने का ठेका है। इसके संचालित होने से ट्रैक पर ट्रायल के दौरान हर गतिविधि पर कम्प्यूटर ही सही और गलत का निर्णय करेगा। यह ऑनलाइन आवेदन के बाद तय होगा कि आवेदनकर्ता को किस तारीख में आना। ट्रायल में सही होने पर पास और गलत होने पर रिजक्ट कर दिया जाएगा।
गौरतलब है कि विभाग में लॉक डाउन से पहले 60 से 65 और अब 30 से 35 लर्निंग लाइसेंस बनाए जा रहे हैं। वहीं परमानेंट लाइसेंस के लगभग 50 व नवीनीकरण कराने वाले प्रतिदिन करीब 85 लोग आते हैं। लर्निंग के लिए प्रतिदिन दो से तीन कर्मचारी ट्रायल लेते हैं। ऐसे में आनन-फानन में भी लाइसेंस जारी हो जाते हैं। इस स्थिति पर अंकुश लगाने और कार्य में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से मुख्यालय पर कम्प्यूटराइज्ड ट्रायल सिस्टम की पहल की गई।
लेकिन, ट्रैक तैयार होने के बाद भी जयपुर की कंपनी इस सिस्टम को सुचारू करवाने में रुचि नहीं दिखा रही। इसलिए ट्रैक पर ट्रायल का कार्य वर्षों से ंकंपनी की लापरवाही के कारण अधर में लटका हुआ है। प्रादेशिक परिवहन कार्यालय के डीटीओ द्वितीय राजीव चौधरी का कहना है कि विभागीय परिसर में ट्रैक पर कम्प्यूटराइज्ड ट्रायल सिस्टम एक जयपुर की कंपनी को शुरू करना है। सिस्टम शुरू होते ही ट्रायल भी शुरू कर दिया जाएगा। कारण पता नहीं कि क्यूं शुरू नहीं हो पा रहा है। जबकि, ट्रैक संबंधी निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।