पंचायत के युवा समाजसेवी सुनील सरियाम, मुकेश धुर्वे बताते हैं कि खदान खुलने के बाद हमारी पंचायत और आसपास के गांवों के विकास का इंतजार है। लेकिन कोल प्रबंधन द्वारा अब तक ऐसा कुछ नहीं किया। जिससे हमारे गांव का विकास हुआ हो। हर बार सिर्फ आश्वासन देते हैं। जमीनी हकीकत सबके सामने हैं। उन्होंने कहा कि खदान खुले 27 साल बीत गए हैं। लेकिन पंचायत की सुध नहीं ली गई। ग्रामीणों ने सीएमडी को बताया कि छतरपुर-1 खदान में आधा दर्जन ग्रामीणों की जमीन गई थी। लेकिन नौकरी सिर्फ एक व्यक्ति को मिली है। कोल प्रबंधन से लड़ाई लड़ते हुए 15 साल हो गए हैं। लेकिन निर्णय अब तक नहीं आया।
जनपद पंचायत घोड़ाडोंगरी अंतर्गत छतरपुर पंचायत की आबादी करीब 4 हजार है। इसमें 98 प्रतिशत आदिवासी है। जिनकी जीविका का मुख्य साधन खेती है। लेकिन खदान खुलने के बाद भू-जलस्तर तेजी से घट गया और रोजगार के अभाव में ग्रामीणों को दूसरे प्रदेशों में पलायन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने सीएमडी के सामने स्पष्ट रूप से कहा है कि समय रहते गांवों में व्याप्त समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो हम अपनी जायज मांगों और अधिकार को लेकर जल्द ही आंदोलन करेंगे। सुनील सरियाम ने बताया कि समस्या सुनने के बाद सीएमडी ने निराकरण का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि इन समस्याओं से वे अनजान थे। सीएमडी से चर्चा करने वालों में पूर्व उपसरपंच दिलीप वरकड़े, सरपंच सुंदरलाल कुमरे, बिजलसिंह सयिाम, कैलाश सरियाम, जियालाल धुर्वे, पूर्व सरपंच कैलाश वरकड़े, उपसरपंच देवकराम ककोडिय़ा, सुखलाल धुर्वे, रामशा वरकड़े समेत सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण शामिल है।