थल सेना में शामिल वाले क्षेत्र के पहले सैनिक का गौरव हासिल करने वाले ग्राम सिंघनपुरी निवासी सेना के सेवानिृवत्त सूबेदार दल्लू प्रसाद ने आजादी के पर्व के दौरान आजादी के बाद से देश की बढ़ती सैन्य ताकत को लेकर पत्रिका से अपनी बात साझा की। उन्होंने देश की बढ़ती सैन्य क्षमता पर गर्व महसूस करते हुए कहा कि सेना में रहने और देश के लिए लडऩा उनके जीवन की सार्थकता है। उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि सन् 1951 के समय में और आज में काफी अंतर आया है। आज हमारे पास हर तरह के संसाधन हैं। उस समय हमारी सेना का शुरुआती दौर था, पर देशप्रेम का जज्बे के मामले में तब भी हमारे सामने कोई नहीं टिकता था, और न आज कोई टिक पाएगा।
14 जुलाई 1951 में भोपाल में सेना शिविर में सलेक्ट होने के बाद दिल्ली जाकर सेना में भर्ती होने वाले दल्लू प्रसाद ने बताया कि देश के सबसे ऊंचे शिखर पर रहकर उन्होंने चीनी सैनिकों की कमजोरियों को करीब से जाना है। सन् 1962 में 20 अक्टूबर से लेकर 21 नवंबर तक चीन के साथ हुए युद्ध में वे चीनी सैनिकों को कायरों की तरह भागते देख चुके हैं। उन्हें चीन के सौनिकों में हौसले की कमी तब से नजर आ रही है। देश के लिए लडऩे के गौरव के बारे में बात करते हुए बताया कि तब संसाधन कम हुआ करते थे, पर कड़े अनुशासन, प्रशिक्षण व हौसले के बल पर भारतीय सेना किसी भी विपरित स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहती थी।
दल्लू प्रसाद आसाम में रहकर चीन के साथ युद्ध और सन् 1972 में पाकिस्तान से अलग देश बन चुके बांग्लादेश में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई का अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि लड़ाई के दौरान पकिस्तान से बांग्लादेश को आजादी दिलाने के साथ वहां सही माहौल बनाने की भी चुनौती थी, जिसमें देश की सेना सफल रही। बंगाल में युद्ध के दौरान ढाका सहित कई शहरों को तबाह होते देखा, जो शहर युद्ध के पहले संपन्न हुआ करता था, वह खंडहर बन चुका था। सेना में 26 साल 9 महीने और 5 दिन के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त होने वाले सूबेदार अवस्थी देश की बड़ती ताकत पर गर्व होने की बात कहते हुए वर्तमान में उन्हें दी जा रही सेवाओं पर खुशी व्यक्त की।
नवागढ़ ब्लॉक के ग्राम अंधियारखोर के राधेश्याम राजपूत सैनिक बनकर देशसेवा की मंशा लिए सन् 1963 में सेना ज्वाइन किया। वे सन् 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजादी दिलाने के लिए हुई लड़ाई का हिस्सा बने और पाक को शिकस्त देने वाले दल का सदस्य होने का गौरव प्राप्त किया। रिटायर्ड सैनिक राजपूत ने बताया कि पाकिस्तान सेना के समपर्ण के बाद उत्सव का नजारा था। उन्होंने कहा कि हमारी क्षमता व ताकत में लगातार इजाफा हुआ है। उन्होंने बताया कि सेवानिवृत्त होने के बाद शिक्षक बनकर देश के लिए जवान तैयार करने का अवसर मिला। उनके अनुभवों को साझा करने के बाद क्षेत्र के कई युवा देश की सेना में हैं। उनकी सैनिक के साथ शिक्षक बनने की तमन्ना थी, जो पूरी हुई है।