यह 2003 के चुनाव की बात है। चौहटन से कांग्रेस के प्रत्याशी अब्दुल हादी थे। छह बार विधायक रह चुके हादी का तोड़ भाजपा को नहीं मिल रहा था। भगवानदास डोसी, जो उनके सामने चुनाव दो बार जीते थे, वे भी नहीं थे। अब किसको उतारा जाए। भाजपा ने रणनीति खेली और हादी के अजीज मित्र गंगाराम चौधरी को टिकट दे दिया। गंगाराम चौधरी और अब्दुल हादी की दोस्ती इतनी गहरी रही थी कि राजनीति में दोनों एक दूजे के भाई की तरह रहे।
गंगाराम को टिकट मिलते ही अब्दुल हादी का गुस्सा सातवें आसमान पर आ गया। चुनाव प्रचार की अपनी पहली ही सभा में खुलकर बोला, जैसा उनकी आदत में था। हादी हार गए और गंगाराम 6573 वोटों से जीत गए। हादी का यह अंतिम चुनाव था। इसके बाद चौहटन की सीट भी आरक्षित हो गई। हादी चुनाव के साथ अपनी दोस्ती हार चुके थे और गंगाराम ने भी एक मित्र खो दिया।
बीमार हुए हादी और फिर नहीं रहे-
हार के बाद हादी काफी समय तक बीमार रहे। 2009 में हादी के इंतेकाल से पहले चौधरी मिलने ढाणी बुरहान का तला गए। जहां 6 साल बाद दोनों में बातचीत हुई और 2009 में हादी का इंतेकाल हो गया।
हार के बाद हादी काफी समय तक बीमार रहे। 2009 में हादी के इंतेकाल से पहले चौधरी मिलने ढाणी बुरहान का तला गए। जहां 6 साल बाद दोनों में बातचीत हुई और 2009 में हादी का इंतेकाल हो गया।
दोनों ही गहरे दोस्त थे। 2003 के चुनावों में आमने-सामने लड़े थे। इसके बाद अंतिम समय में दोनों की मुलाकात हुई।
गफूर अहमद, अब्दुल हादी के पुत्र
गफूर अहमद, अब्दुल हादी के पुत्र