सदी हुई युवा, यौवन पर बाड़मेर
21 वीं सदी ने 18 साल पूरे कर लिए, यानि पूरी युवा। अकाल-अभाव और समस्याओं से जूझते बाड़मेर के लिए इतनी शुभ रही है कि बाड़मेर विकास के यौवन पर आ गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़कों से सफर शुरू किया, तेल के खजाने से
विश्व पटल पर छाया हुआ है। हरित क्रांति ने अकाल से जूझते हजारों धरतीपुत्रों के घर धन-धान्य की बारिश कर दी। कवास की बाढ़ ने झकझोरा लेकिन जिजीविषा देखिए एक नहीं दो कवास में फिर जिंदगी जिंदा है। बीसवीं सदी में बड़ी तोहमत थी निरक्षर बाड़मेर। इक्कीसवीं सदी में देश की सबसे बड़ी परीक्षा आइएएस में एक साथ बाड़मेर के छह युवा लोहा मनवाते हैं तो देश मानने लगा है। तेल निकलने के बाद हमने जिद्द पकड़ ली कि पहली रिफाइनरी तो लेकर ही रहेंगे क्योंकि तेल हमारा है…। अब बधाइयां बंट रही हैं पचपदरा में 43000 करोड़ की रिफाइनरी का काम गति पकड़ रहा है। खुलकर सपने देखिए… बाड़मेर के दुबई बनने के अच्छे
दिन आ रहे हैं। इक्कीसवीं सदी के युवा बाड़मेर पर रतन दवे की विशेष रिपोर्ट-
14. क्रूड ऑयल चोरी का भण्डाफोड़…
जिले में निकल रहे क्रूड ऑयल की चोरी का खेल शुरू हुआ। हर माह करोड़ों का क्रूड ऑयल मिलीभगत से पार होने लगा। पत्रिका ने इस मामले को उजागर करने के साथ लगातार पड़ताल की। नतीजतन इस बड़े मामले का खुलासा हुआ। मास्टर माइंड को पकड़ा गया। क्रूड ऑयल के लिए जुगाड़ से बनाए शोधन कारखाने को भी पकड़ा गया। इस मामले में दिलेरी के साथ निष्पक्ष पत्रकारिता का उदाहरण पेश किया।
15. उचित मुआवजा मिला… कपूरड़ी और बोथिया गांव के राजवेस्ट पावर प्रोजेक्ट के लिए जमीन अवाप्त होने लगी। यह जिले में पहली भूमि अवाप्ति थी। डीएलसी दरें कम होने से मुआवजा नाममात्र देकर किसानों को जमीन छोडऩे को मजबूर होना पड़ रहा था। पत्रिका ने इसे मुहिम बनाया। नतीजतन डीएलसी की विशेष दरें तय होने के साथ ही मुआवजा राशि कई गुणा बढ़ा दी गई। किसानों की जमीन अवाप्ति को लेकर बोथिया-कपूरड़ी आधार बने और जिले में हजारों किसानों को अब तक फायदा मिल रहा है।
16. अग्रिपीडि़तों के लिए बदले नियम… प्रतिवर्ष 250 से 300 कच्चे झोंपों और ढाणियों में आग लग जाती है। जनहानि,पशु और घरेलू सामान जलने पर मुआवजा मामूली मिल रहा था। पत्रिका ने सहरा में दर्द बड़ा गहरा अभियान चलाकर अग्रिपीडि़तों की मुआवजा राशि बढ़वाई। – हरीश चौधरी, राजस्व मंत्री
17. पालनहार से खत्म हुआ आरक्षण… पालनहार योजना में उन बच्चों को लेना था जिनके मां-बाप दोनों नहीं हों या पिता की मृत्यु हो गई हो। पत्रिका की मुहिम बाद राज्य सरकार ने माना कि इस इस योजना में आरक्षण का औचित्य नहीं।
1. धर्मबहादुर जिंदा है
2014 की दिसंबर की एक रात। माडपुरा बरवाला में एक मानसिक विक्षिप्त महिला ने बच्चे को जन्म दिया और सर्दी में सड़क पर ही 24 घंटे से बदहवास पड़ी थी। पत्रिका को खबर मिली और तुरंत एम्बुलेंस सहित पहुंचकर मां-बेटे को अस्पताल लाया। सामाजिक संस्थाओं की मदद से उपचार किया और फिर दोनों का पुनर्वास। मदद बाद मानसिक विक्षिप्त मां की हालत सुधरी तो बेटा भी अब पांच साल का हो गया है। इस बच्चे का नाम धर्मबहादुर है।
2. पीयूष-अंजलि बोलते हैं…
पीयूष और अंजलि दोनों बालोतरा के हैं। इन बच्चों की हियरिंग मशीन खो गई थी। 7.50 लाख की दोनों मशीनें 15 लाख की थी जो सरकार ने मुफ्त दी थी। तब दोनों बच्चे तीन और चार साल के ही थे। दूसरी मशीन खरीदना मुश्किल था। पत्रिका ने आवाज खो गई मासूमों की शीर्षक से सामाचार व फॉलोअप अभियान चलाया। पत्रिका के समाचार का असर रहा कि दोनों मासूमों को तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नई हियरिंग मशीनें उपलब्ध करवाईं। दोनों बच्चे अब बोल सुन सकते हैं।
3. जिंदगी आसानी से कटेगी
हापों की ढाणी की लीला के दोनों हाथ करंट से कट गए थे जब चार साल की थी। पांवों से लिखना शुरू किया। पढ़ाई के दौरान तीन साल पहले कृत्रिम हाथ लगाए गए। ये हाथ पंद्रह दिन बाद खूंटी पर टांग दिए। पत्रिका की टीम पहुंची और इस पर समाचार किया। फिर मुआवजे व मदद को आगे आए। करीब डेढ़ साल तक पत्रिका ने इस मामले में संवेदनशीलता से फॉलोअप किया और डिस्कॉम ने 7.5 लाख मुआवजा और विभिन्न संस्थाओं ने करीब 1.75 लाख रुपए मदद में दिए।
4. दक्षा को मिली नौकरी
सिवाना की दक्षा श्रीमाली के पति, ससुर और देवर की दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सास ने भी दुर्घटना में चोटिल होने पर खाट पकड़ ली। ससुर सरकारी सेवा में थे। राज्य सरकार ने आश्रित नहीं मानते हुए नौकरी देने से इनकार कर दिया। पत्रिका ने मुहिम चलाई और स्थापित किया कि आश्रित अब वो ही है। पत्रिका के फॉलोअप पर सरकारी सेवा में लिया गया, सरकार ने आदेश में स्पष्ट किया कि मानवीय संवेदना का यह विशेष प्रकरण है,इसलिए नौकरी दी जा रही है। विधायक हमीरसिंह सहित समाज के कई लोगों का भी सहयोग लगातार रहा।
अगासड़ी गांव की रेशमा के पाकिस्तान में इंतकाल बाद शव भारत लाना मुश्किल हो गया। पत्रिका ने मुहिम चलाई। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व पाकिस्तान के अधिकारियों सहित जिला प्रशासन ने मदद की। व्यक्तिगत संबंधों के जरिए पूरा सहयोग किया। भारत-पाकिस्तान दोनों देशों ने शव को भारत लाने की इजाजत दी और ऐतिहासिक निर्णय करते हुए शव के लिए दोनों देशों ने मुनाबाव बॉर्डर के गेट खोल दिए। रेशमा को उसकी जन्नत मिली और शव भारत में दफन हुआ, यह बड़ा सकून है। – मानवेन्द्रङ्क्षसह, पूर्व सांसद
2. रिफाइनरी…
रिफाइनरी को पत्रिका ने अभियान प्रारंभ किया। लगातार लौ को जलाए रखा। पत्रिका की सजगता का नतीजा रहा कि 16 जनवरी
2018 को पचपदरा में प्रधानमंत्री ने 43 हजार करोड़ की रिफाइनरी का शुभारंभ किया। ए.पी. गौड़, महाप्रबंधक केयर्न इंडिया
3. कवास की बाढ़
2006 कवास में बाढ़ के दौरान हर घर को अमृत कलश से 5000 से 10 हजार रुपए दिए गए। समाचारों के अभियान से बाढ़ बचाव, राहत और पुनर्वास तक लगातार दो साल तक मदद की। पत्रिका संवेदनशीलता से बाढ़ पीडि़तों के साथ रही।
– रेखाराम माली, कवास
4. बिक रहा बॉर्डर
सीमावर्ती क्षेत्र में जमीनों की खरीद-फरोख्त का बड़ा गड़बड़झाला उजागर किया। बॉर्डर की बिकी हुई जमीन की जांच के साथ अधिकारियों को निलंबित किया। प्रदेश का यह सबसे बड़ा खुलासा रहा। – करणाराम चौधरी, अध्यक्ष बार एसोसिएशन
5. कारेली नाडी
शहर की कारेली नाडी को डंपिंग स्टेशन बना दिया। पत्रिका ने मुहिम से सोच स्थापित की कि यह कचरा एक दिन में उठाया जा सकता है। महज 12 घंटे में 35000 टन कचरा तालाब से निकाला गया। इस काम से कारेली का उद्धार हो गया। नवलकिशोर गोदारा, समाजसेवी
6. मैं सिणधरी चौराहा बोल रहा हूं…
पत्रिका ने मैं सिणधरी चौराहा बोल रहा हूं… शीर्षक से चलाई मुहिम में अव्यवस्थाओं की कलई खोल कर रख दी। सिणधरी रोड का निर्माण प्रारंभ हुआ। रघुवीरङ्क्षसह तामलोर, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष
7. उत्तरलाई की
सुरक्षा दीवार…
पत्रिका के अभियान बाद सांसद अर्जुन मेघवाल ने संसद में मामला उठाया। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंथनी ने दीवार की स्वीकृति दी।
– लक्ष्मण बड़ेरा, सामाजिक कार्यकर्ता
8. मानसिक विक्षिप्तों का उपचार…
जिले में अब तक 125 से अधिक मानसिक विक्षिप्तों का पत्रिका के समाचारों से उपचार हुआ है। पत्रिका की मानव सेवा का अनुपम उदाहरण है। महेश पनपालिया, धारा संस्थान
9. तपन भरी राहें…
नंगे पांव स्कूल आने वाले विद्यार्थियों के लिए पत्रिका की मुहिम से करीब 25000 बच्चों को 5500 स्कूलों में जूते वितरित किए गए। यह अभियान मन को छू गया।
– सुधीर कुमार शर्मा, पूर्व जिला कलक्टर
10. डीएनपी क्षेत्र में मूलभूत सुविधाएं
राष्ट्रीय मरू उद्यान क्षेत्र (डीएनपी) में बसे बाड़मेर-जैसलमेर के 73 गांवों में मूलभूत सुविधाओं पर पाबंदी के निर्णय पर पत्रिका ने मुहिम के बाद मरू उद्यान संघर्ष समिति का गठन हुआ। लोगों को पता ही नहीं था उनको कितनी पाबंदियां घेर रही है,वे सहते रहे। पत्रिका ने राह प्रशस्त की।
– स्वरूपसिंह राठौड़, अध्यक्ष मरू, उद्यान संघर्ष समिति
11. नाता प्रथा: बच्चों को सामाजिक सुरक्षा
पति की मृत्यु होने पर कई समाज में विधवा महिला नाता कर अपना घर बसा लेती है लेकिन उसके छोटे बच्चे दादा-नाना के घर ही रह जाते हैं। इस प्रथा से सताए बच्चों का ढंग से पालन-पोषण आर्थिक परेशानी से नहीं हो पाता। राज्य सरकार ने नाता प्रथा से प्रभावित बच्चों को पालनहार योजना से पत्रिका मुहिम बाद जोड़ा। हनुमानराम डऊकिया, समाजसेवी
12. छात्रावासों का हुआ कायाकल्प
सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय विभाग के छात्रावासों की हालत खस्ता थी। एक छात्रावास में न खिड़कियां न दरवाजे। पांच टन से अधिक कचरा अटा था। पत्रिका की मुहिम से पता चला। प्रदेशभर के छात्रावासों की स्थिति सुधारने के आदेश जारी हुए।
– हेमाराम चौधरी, विधायक गुड़ामालानी
13 . डायलिसिस मशीन लगी
किडनी और थैलेसिमिया के मरीजों के लिए डायलिसिस मशीन की दरकार महसूस हुई। जोधपुर व अहमदाबाद के बीच मरीज व परिजन चक्कर काटकर परेशान हो रहे थे। दूरी के कारण कई लोगों की जान भी चली गई। पत्रिका ने डायलिसिस मशीन स्वीकृति का बड़ा काम करवाया। – बद्रीप्रसाद शारदा, अध्यक्ष केमिस्ट एसोसिएशन