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पहले जिसे देखा तक नहीं था, अब उससे मिल रहा रोजगार

locationबारांPublished: Feb 18, 2019 08:00:55 pm

शाहाबाद. आदिवासी शाहाबाद-किशनगंज क्षेत्र मे सहरिया समाज के लोग बहुतायात मे निवास करते हैं। अधिकांश सहरिया समाज के लोग जंगलों से मिलने वाली औषधि पर ही निर्भर रहते हंै।

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पहले जिसे देखा तक नहीं था, अब उससे मिल रहा रोजगार

शाहाबाद. आदिवासी शाहाबाद-किशनगंज क्षेत्र मे सहरिया समाज के लोग बहुतायात मे निवास करते हैं। अधिकांश सहरिया समाज के लोग जंगलों से मिलने वाली औषधि पर ही निर्भर रहते हंै। भारतीय ग्रामीण विकास संस्थान ने सहरिया समाज के लोगों को स्ट्रॉबेरी की फसल को बढ़ावा देने के लिए पहल की है। इस जाति के परिवारों को इसकी खेती के गुर सिखाए जा रहे हैं।
परियोजना समन्वयक सूरज खंगार ने बताया कि जनजाति मंत्रालय भारत सरकार एवं जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग की ओर से सहरिया जनजाति को सांस्कृतिक सामाजिक आर्थिक रूप से समृद्व करने के लिए सहरिया अभिनव योजना स्वीकृत की गई थी। सहरिया परिवारो को स्थाई रोजगार से जोडऩे के लिए जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ो मे सब्जी व फल उगाकर आय बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। परियोजना के माध्यम से महिला समूहों को स्ट्रॉबेरी के 25 गांवों मे पौधे वितरित किए गए। जिनमें अब फल आने लगे हंै। कई परिवार स्ट्राबेरी बेच परिवार की आय बढ़ा रहे हैं।
पाचन मजबूत, चर्बी कम
स्ट्रॉबेरी फल पाचन क्षमता बढ़ाने के साथ शरीर की चर्बी को कम करता है। हड्डियों को भी विकसित करता है। कैंसर से बचाव व हृदय संम्बन्धी बीमारियो को कम करता है। यह फोलिक एसिड से भरा हुआ है। रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित भी करता है।
क्षेत्र मे अभिनव प्रयास
भारतीय ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा क्षेत्र के गांवों में 25 सहरिया परिवारों तक स्ट्रॉबेरी के पौधे पहुंचाकर उन्हें रोपण की विधि समझाई जा रही है। कई दौर के प्रशिक्षण के बाद अनेक सहरिया परिवार अब इसका सुरक्षित उतपादन करने लगे हैं। खेती के इस नवाचार का कई अधिकारी अवलोकन भी कर चुके हैं। आने वाले समय मे स्ट्रॉबेरी की खेती कर सहरिया समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकेगी।
बाजार में मिलता है अच्छा भाव
स्ट्रॉबेरी की खेती बहुतायात में अमेरिका, तुर्की, स्पेन व मिश्र के साथ भारत के महाराष्ट्र में प्रांत में होती है। स्ट्रॉबेरी का बाजार भाव दो सौ से चार सौ रुपए प्रति किलो तक रहता है। पहले क्षेत्र के लोग इस फल से अनजान थे, लेकिन अब सहरिया परिवार के लोग इसका आनंद उठा रहे हैं।

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