पॉलीथिन के उपयोग के बाद कचरा आदि भरकर सडक़ों पर फेंक देने से इनके ढेर यत्र-तत्र देखे जा सकते हंै। सफाई के बाद सफाईकर्मियों की ओर से समय पर कचरा नहीं उठाने से ये हवा के संग फिर से उड़ती हुई घरों तक पहुंच रही है तो कहीं झाडिय़ों में अटक रही है।
जिस जगह यह मिट्टी में दब जाती है, उस स्थान से जल बहकर चला जाता है। जिससे जमीनी जलस्तर नहीं बढ़ पाता। खाद्य सामग्री के संग इन्हें फेंक देने से मवेशी खाद्य सामग्री खाने के दौरान इन्हें भी पेट में निगल जाते है और यह उनकी अकाल मौत का कारण बन जाती है। जलाने पर यह गहरी काली धुआं उगलती है, जिससे भयंकर प्रदूषण होता है। पॅालीथिन गलती नहीं है, जिससे जमीन में गहराई पर होने से पेड़-पौधों की जड़ों को विस्तार लेने में रोड़ा बन जाती है।
पॉलीथिन की जडं़े इतनी विस्तारित हो चुकी है कि इसे हर खाद्य वस्तु व अन्य सामान के क्रय-विक्रय के दौरान उपयोग में ली जाने लगी है। दूध, दही, छाछ, तेल, घी, सब्जियां, शक्कर, आटा, मिर्च-मसाला, फल, पुष्प, अल्पाहार आदि सामान खरीद पॉलीथिन में ले जाया जाता है।
पोलीथिन के दुष्परिणाम कितने घातक है,कि पीएम को इस बीमारी से दूर रहने का आह्वान करना पड़ा है। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से संबोधन के दौरान पीएम नरेन्द्र मोदी ने देश को पॉलीथिन मुक्त बनाने का प्रत्येक नागरिक से आह्वान किया, लेकिन आश्चर्य है कि इसके बाद भी सरकारी नुमाइंदों की नींद नहीं खुली है। आजादी के जश्न के तीन दिन बाद भी सरकारी नुमाइंदों की ओर से पॉलीथिन पर रोक को लेकर कोई कार्ययोजना या प्रयास जैसे कदम नहीं उठे।
पॉलीथिन का उपयोग बंद करने की हिदायत वाले संदेशों की सोशल मीडिया पर धूम मची हुई है। एक संदेश कि जब जेब में 250 ग्राम का स्मार्ट फोन, 100 से 50 ग्राम का पर्स आदि रख सकते हैं, 10 ग्राम रूमाल की तरह एक कपड़े का थेला भी जेब में हर समय रख सकते हैं, ताकि बाजार से सामान लेने पर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। पॉलीथिन स्वत: ही नजर नहीं आएगी।