बीच राह बंद हुई रेल परियोजना वर्ष 2011-12 में डूंगरपुर-रतलाम वाया बांसवाड़ा महत्वाकांक्षी रेल परियोजना की शुरुआत हुई थी। केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त परियोजना में तत्कालीन राज्य सरकार ने अपने हिस्से के दो सौ करोड़ रुपए भी दे दिए। इसके बाद रेलवे लाइन के लिए भूमि अवाप्ति सहित अन्य प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन वर्ष 2013 में सत्ता परिवर्तन के साथ ही परियोजना पर ग्रहण लग गया। भूमि अवाप्ति को लेकर राज्य सरकार ने उदासीनता बरतनी शुरू कर दी। भूमि अवाप्ति के लिए राशि देनी बंद कर दी, जिससे भूमि की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाई। हालांकि रेल मंत्रालय ने सरकार से किए अनुबंध का हवाला दिया, लेकिन सरकार ने बजट न होने का तर्क देकर इतिश्री कर दी। इसके बाद रेलवे ने अर्थवर्क के काम भी एक-एक कर बंद किए। दफ्तर और अफसर हटा कर परियोजना को फ्रीज करने के आदेश दे दिए। इसके बाद बांसवाड़ा में उप मुख्य अभियंता कार्यालय पर भी ताले लग गए।
महंगी पड़ेगी परियोजना पांच साल बाद अब इस परियोजना की लागत काफी बढ़ गई है। दो राज्यों और तीन जिलों से जुड़ी इस परियोजना की आरंभिक लागत 2100 करोड़ रुपए थी। तीन जिलों में करीब 180 करोड़ के काम भी हुए। साथ ही भूमि अवाप्ति में 60 करोड़ रुपए व्यय हुए। एक अनुमान के अनुसार अब यह परियोजना करीब छह हजार करोड़ पहुंच गई है।
इन पर भी हो विशेष जोर 1. मिले स्थायी रोजगार : बांसवाड़ा जिले में ग्रामीण अंचल में रोजगार के स्थायी स्रोत व साधन नहीं हैं। विशेष रूप से गुजरात से सटे कुशलगढ़, सज्जनगढ़, आंनदपुरी क्षेत्र सहित जिले के विभिन्न हिस्सों से लोग रोजगार के लिए गुजरात और महाराष्ट्र के लिए पलायन करते हैं। बीते सालों में जिले में औद्योगिक विकास को भी गति नहीं मिल पाई है, जिससे कि लोगों को रोजगार मिल सके।
2. पर्यटन विकास : बांसवाड़ा नैसर्गिक सौन्दर्य, धार्मिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिला है। इसके बाद भी पर्यटन विकास नहीं हो पाया है। पिछले सरकार ने माही बांध के बैकवाटर क्षेत्र में टापूओं को विकसित करने के लिए राशि आवंटित की, लेकिन अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। जिले को मेवाड़-वागड़ पर्यटन सर्किट बनाकर जोडऩे से पर्यटन केंद्र के रूप में राष्ट्रीय मानचित्र पर लाया जा सकता है।
3. स्वास्थ्य सुविधाओं का हो विस्तार: जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं लचर हैं। जिला मुख्यालय पर स्थित राजकीय चिकित्सालय सहित ग्रामीण अंचलों में प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों और कार्मिकों के कई पद रिक्त हैं। जांच की आवश्यक सुविधाएं नहीं मिलने के कारण लोगों को उदयपुर और गुजरात के विभिन्न शहरों में उपचार के लिए जाना मजबूरी बना हुआ है।
4. नहरी तंत्र हो सुदृढ़: जिले के 80 हजार हैक्टेयर में माही बांध से निकली नहरें जीवनदायिनी साबित हुई, लेकिन अब नहरी तंत्र को सुदृढ़ किए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में कई जगह नहरें क्षतिग्रस्त हैं तो कई जगह सीपेज के कारण खेत दलदल में बदल रहे हैं। ऐसे में किसानों की मेहनत जाया हो रही है। सरकार की ओर से समय-समय पर नहरों के सुदृढ़ीकरण के लिए राशि तो दी गई, लेकिन इसके समुचित तरीके से उपयोग में े माही विभाग विफल रहा है।