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बांसवाड़ा

Pics : विश्व पर्यटन दिवस विशेष : बांसवाड़ा : वैभव से भरपूर हमारा शहर, लेकिन पर्यटक नहीं आते नजर

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7 years ago
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बांसवाड़ा. नैसर्ॢगक सौन्दर्य से परिपूर्ण। माही की जलधाराओं के कल-कल निनाद से गुंजायमान और माही की अथाह जलराशि के बीच छोटे-बड़े टापू व सदानीरा नदियों के जलप्रपात। ऐतिहासिक और पुरातत्व धरोहर से समृद्ध। पुरातन और नवीन धर्मस्थलों एवं आस्था स्थलों की वृहद शृंखला। इसके उपरांत भी अरावली की उपत्यकाओं से घिरा बांसवाड़ा जिला पर्यटन विकास की दृष्टि से राज्य सरकार की उपेक्षा झेल रहा है। पर्यटन विकास के लाखों दावे किए गए, सरकार ने कार्यालय भी खोला, लेकिन उपलब्धियां नगण्य। इन स्थितियों में गुजरात और मध्यप्रदेश से सटा और ‘लैण्ड ऑफ हंड्रेड आईलैण्ड’ कहा जाने वाला बांसवाड़ा पर्यटन विकास की बाट जोह रहा है।
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जिले में पर्यटन विकास की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसके उपरांत भी प्रशासनिक और राजनीतिक दूरदृष्टि का अभाव पर्यटन विकास को वह दिशा नहीं दे पा रहा, जिससे बांसवाड़ा में पर्यटन विकास को गति मिल सके। प्रशासनिक स्तर पर होने वाली बैठकों में किए विचार-विमर्श और सुझावों को मूर्त रूप देने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
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यहां बिखेरती है प्रकृति अपना सौन्दर्य : जिले में माही बांध, माही बांध के बेकवाटर के टापू, चाचाकोटा, कागदी पिकअप वियर, जुआ फॉल, झोल्ला फॉल, काकनसेजा फॉल, कागदी फॉल, कड़ेलिया फॉल, आदि स्थान ऐसे हैं, जहां बरसात के दिनों में प्रकृति मानो यहां अपना पूरा सौन्दर्य लुटाती है। पहली बारिश के बाद पहाडिय़ां हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती हैं। हरियाली और बहता पानी ही पर्यटकों को यहां खींच लाने में सक्षम है, लेकिन गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
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धरोहर सदियों की साक्षी : जिले में पुरातत्व धरोहरें शिल्प और स्थापत्य कला का भी दिग्दर्शन कराती है। नौवीं और ग्यारहवीं शताब्दी के अरथूना, पाराहेड़ा, तलवाड़ा और छींच के पुराने मंदिर इसके साक्षी हैं। पाण्डवों के अज्ञातवास की स्थली रहा घोटिया आम्बा, रामकुण्ड, भीमकुण्ड भी पर्यटकों को सम्मोहित करने की क्षमता रखते हैं।
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धार्मिक पर्यटन दे सकता है गति : जिले में धार्मिक स्थल पर्यटन विकास को गति देने के साथ स्थाई रोजगार के संकट से मुक्ति दिला सकते हैं। मंदारेश्वर, साईं मंदिर, अब्दुल्ला पीर की दरगाह त्रिपुरा सुंदरी, तलवाड़ा में सूर्य, गणपति एवं द्वारिकाधीश मंदिर, छींच का ब्रह्मा मंदिर, घाटोल में डगिया भैरव, अंदेश्वर पाश्र्वनाथ जैन मंदिर, आदि देश-प्रदेश के धर्मावलम्बियों की आस्था के प्रमुख केंद्र हैं।
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अंचल में उदयपुर देशी-विदेशी पर्यटकों का सबसे बड़ा केंद्र हैं। इसके बाद भी उदयपुर आने वाले पर्यटकों को बांसवाड़ा तक खींच लाने के प्रयास पर्यटन विभाग और प्रशासनिक स्तर पर नहीं हो रहे हैं। स्थिति यह है कि वर्षभर उदयपुर में देशी-विदेशी पर्यटकों की आवक बनी रहती है, वहीं बांसवाड़ा एक अदद विदेशी पर्यटक के लिए भी तरसता है। सरकार ने सिर्फ यहां पयर्टन विभाग का कार्यालय खोलकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। जिसमें महज दो ही कार्मिक वर्षों से कार्यरत हैं और पर्यटन विकास के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है।
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लगभग 487 वर्ष पूर्व सन् 1930 में स्थापित बांसवाड़ा शहर पर प्रकृति की बड़ी मेहरबानी रही है और यही कारण है कि यह शहर प्रकृति की अनमोल दौलत से लकदक है। इस शहर में सबकुछ है। नदी, नाले, पहाड़, तालाब, झील, राजमहल, क्लॉकटॉवर और भी बहुतकुछ। सघन हरीतिमा से आच्छादित अरावली की अंतिम छोर की पहाडिय़ों की गोद में बसे बांसवाड़ा शहर का मानसून की बारिश के बाद सौंदर्य निखर उठता है। शहर की हृदय स्थली पर बहने वाली कागदी पिक.अप.वियर से इसमें पानी छोड़ा जाता है तो यह नदी सर्पिलाकार रूप में पूरे शहर को दो भागों में बांटती है। शहर से थोड़ी दूर ही मखमली हरी चादर ओड़ी हुई पहाडिय़ों के साथ कागदी नदी में वागड़ गंगा माही का पानी लहराता हुआ बहता है। अपनी इसी बेनज़ीर छवि से पर्यटकों को आकर्षित करते शहर का यह मनमोहक नज़ारा विश्व पर्यटन दिवस की पूर्व संध्या पर सहायक निदेशक, जनसंपर्क कमलेश शर्मा द्वारा क्लिक किया गया है।
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