नई प्रक्रिया से बदलेंगे चुनावी समीकरण : – नगर निकाय चुनाव को लेकर लॉटरी प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है, किंतु इस बार राज्य सरकार की ओर से सभापति के चुनाव की प्रक्रिया बदलने से राजनीतिक दलों को भी अपने समीकरण बदलने होंगे। हालांकि बीते पांच चुनावों के इतिहास पर नजर डालें तो इसमें चार चुनावों में भाजपा का पलड़ा भारी रहा है। वहीं कांगे्रस एक बार अपना निकाय प्रमुख बिठाने में कामयाब रही है। निकाय चुनाव के अन्तगर्त इस बार राज्य सरकार ने सभापति पद के लिए यह अहर्ता तय की है कि कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ सकेगा और इसके लिए पार्षद बनना जरूरी नहीं होगा। ऐसे में राजनीतिक दल सभापति पद पर काबिज होने नए समीकरण बिठाने की जुगत में लग गए हैं। राजनीतिक हलकों से सभापति पद पर काबिज होने को लेकर जो चर्चाएं हो रही हैं, उनमें कहा जा रहा है कि एक तो पार्षदों की संख्या के आधार पर ही प्रत्याशी चयन किया जाएगा। दूसरे इसी आधार पर पैराशूट प्रत्याशी भी उतारा जा सकता है। ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका इंतजार रहेगा।
80 प्रतिशत सफलता : – बीते पांच चुनावों को देखें तो भाजपा ने चार बार अपना बोर्ड बनाया है। वर्ष 1994 में हुए चुनाव में भाजपा के मणिलाल बोहरा, 1999 में उमेश पटियात, 2004 में कृष्णा कटारा अध्यक्ष बनीं। वहीं 2014 में भाजपा से मंजूबाला पुरोहित सभापति बनी। वहीं 2009 में शहर के मतदाताओं ने पहली बार सीधे सभापति को चुना, जिसमें कांगे्रस के राजेश टेलर को सफलता मिली।