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42 फीसदी भारतीय कर्मचारी अवसाद व घबराहट के शिकार

locationबैंगलोरPublished: Oct 11, 2017 08:36:43 pm

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मंगलवार को मनाया गया। दिवस का विषय कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य था

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बेंगलूरु. विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मंगलवार को मनाया गया। दिवस का विषय कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य था। कार्यस्थल पर भी मानसिक स्वास्थ्य जरूरी है लेकिन ४२ फीसदी भारतीय कर्मचारी अवसाद व घबराहट के शिकार हैं।


कार्यस्थल पर पांच में से एक कर्मचारी मानसिक समस्याओं से प्रभावित होता है। इनमें से आधे से ज्यादा उपचार नहीं कराते हैं। जबकि दोनों विकारों का पूर्ण उपचार संभव है। खराब मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव कार्यक्षमता पर पड़ता है। पीडि़त अधिक और बार-बार बिना कारण छुट्टी लेता है। काम में मन नहीं लगता है और कार्य क्षमता में कमी आती है। कर्मचारी पर चिड़चिड़ापन और गुस्सा हावी हो जाता है। दुनिया भर में काम पर ली गई लम्बी छुट्टियों में से 50 छुट्टियां मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण होती हैं।


उत्पादकता का नुकसान
अभया अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. जगदीश ए. का कहना है कि आम तौर पर शारीरिक स्वास्थ्य के बिगडऩे पर लोग फौरन चिकित्सक के पास पहुचते हैं। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को लेकर ऐसा नहीं कहा जा सकता है। धीरे-धीरे समस्या बढ़ती रहती है। कई बार परिणाम काफी चिंताजनक होते हैं।

अवसाद व घबराहट सबसे आम मानसिक विकार हैं। विश्व में ३० करोड़ से भी ज्यादा लोग अवसाद व २६ करोड़ से भी ज्यादा लोग घबराहट की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से कई लोगों को एक साथ दोनों समस्या होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक दोनों समस्याओं के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सालाना एक लाख करोड़ डॉलर उत्पादकता का नुकसान होता है। भारत की बात करें तो १०० में से ४० कार्पोरेट कर्मचारी ६ घंटे से कम सोते हैं।


अन्य बीमारियों की तरह
डॉ. जगदीश के अनुसार मानसिक बीमारियों को अन्य बीमारियों की तरह देखने की जरूरत है। कंपनियों में तैनात प्रबंधकों व पर्यवेक्षकों को मानसिक समस्याओं को पहचानने की दिशा में प्रशिक्षित किया जाए तो इसका लाभ पीडि़त सहित कंपनी को भी मिलेगाा।

हर कंपनी की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दे। अच्छे कार्य के प्रति प्रोत्साहन, दक्षता के आधार पर काम और सकारात्मक व सहयोगात्मक वातावरण हो तो कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य हो बेतहतर बनाया जा सकता है। कंपनियों को चाहिए कि मानसिक समस्याओं से जूझ रहे कर्मचारियों को हौसला बढ़ाएं और उपचार के लिए प्रेरित करें। बीमारी के कारण किसी कर्मचारी को नौकरी छोडऩी पड़े तो सम्मानजनक विदाई दें।

इलाज में अंधविश्वास बन रहा बाधक
आम तौर पर लोगों को भ्रांति होती है कि जादू-टोने से मानिसक बीमारियों का उपचार होता है लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं जो जादू-टोने को मानसिक बीमारियों को कारण मानते हैं। इन्हें लगता है कि काले जादू से लोगों का दिमाग खराब होता है। यह बात सामने आई है पीपल ट्री अस्पताल के एक अध्ययन में।


अध्ययन में शामिल ३०० लोगों में से १२ फीसदी लोगों ने कहा कि जादू-टोने के कारण लोग मानसिक समस्याओं का शिकार होते हैं और इसका उपचार असंभव है। १० फीसदी लोगों को अवसाद व घबराहट जैसी आम मानसिक विकारों के बारे में कुछ भी नहीं पता था। शिजोफ्रेनिया के बारे में ३० फीसदी लोगों को कोई जानकारी नहीं थी। जबकि ३० फीसदी लोगों ने मानने से इनकार कर दिया की मानसिक बीमाारियां अनुवांशिक होती हैं। मनोचिकित्सक डॉ. सतीश रामय्या ने बताया कि अध्ययन में शामिल कई शिक्षित लोगों ने भी जादू-टोने और मानसिक बीमारियों में रिश्ता बताया है। जो चिंता का विषय है।

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