यह हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग उपग्रह है जो अभी विश्व के कुछ चुनिंदा विकसित देशों के पास ही है। हालांकि, हाइपर स्पेक्ट्रल तकनीक एकदम नई नहीं है और इसरो ने पूर्व में इस तकनीक का प्रयोग किया है लेकिन यह पहला अवसर है जब एक समर्पित हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
दरअसल, हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग उपग्रह एक विशेष चिप की मदद से तैयार किया जाता है जिसे तकनीकी भाषा में ‘ऑप्टिकल इमेजिंग डिटेक्टर ऐरे’ कहते हैं। इस उपग्रह से धरती के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना आसान हो जाएगा क्योंकि लगभग धरती से 6 30 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष से पृथ्वी पर मौजूद वस्तुओं के 55 विभिन्न रंगों की पहचान आसानी से की जा सकेगी।
इस उपग्रह में 10 नैनोमीटर वर्णक्रमीय नमूना और 30 मीटर के स्थानिक नमूने के साथ 55 स्पेक्ट्रम बैंड हैं। यह उपग्रह विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के दृश्यमान और निकट पराबैंगनी किरणों में काम करता है।
हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग या हाइस्पेक्स इमेजिंग की एक खूबी यह भी है कि यह डिजिटल इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी की शक्ति को जोड़ती है। हाइस्पेक्स इमेजिंग अंतरिक्ष से एक दृश्य के प्रत्येक पिक्सल के स्पेक्ट्रम को पढऩे के अलावा पृथ्वी पर वस्तुओं, सामग्री या प्रक्रियाओं की अलग पहचान भी करती है।
तेल और खनिज खानों की खोज होगी आसान
हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग के क्षेत्र में विश्व भर में परीक्षण हो रहे हैं। इन उपग्रहों से पृथ्वी के दैनिक इस्तेमाल में आनेवाले विभिन्न कार्यों को बेहतर ढंग से अंजाम दिया जा सकेगा।
इस उपग्रह के ऑपरेशनल होने के बाद विशेष रूप से कृषि क्षेत्र व सेना को काफी लाभ होगा। इससे पर्यावरण सर्वेक्षण, फसलों के लिए उपयोगी जमीन का आकलन, तेल और खनिज पदार्थों की खानों की खोज आसान होगी।
पैनी होगी सीमाओं की निगरानी
हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग तकनीक से अंतरिक्ष में स्थित उपग्रह द्वारा पृथ्वी के विभिन्न पदार्थों की पहचान आसानी से की जा सकती है। करीब 10 साल पहले इसरो ने माइक्रोवेव और राडार इमेजिंग उपग्रह रिसैट (रिसैट-1 और रिसैट-2) तैयार किया था।
इन उपग्रहों से घने बादलों या रात में भी पृथ्वी की निगरानी संभव हो सकी। ये उपग्रह भारत की सुरक्षा के लिए काफी कारगर साबित हुए। अब इस उपग्रह के प्रक्षेपण से भारतीय सीमाओं की निगरानी और मजबूत हो जाएगी।
इसरो ने मई 2008 में पहली बार 8 3 किलोग्राम भार के एक प्रयोगात्मक उपग्रह आईएमएस-1 को प्रक्षेपित कर इस तकनीक को परखा था। उसी वर्ष चंद्रमा की धरती पर खनिज संसाधनों के मानचित्रण के लिए चंद्रयान-1 में भी हाइपरस्पेक्ट्रल कैमरा लगाया गया।
लेकिन, अब पूरी तरह समर्पित हाइपरस्पेक्ट्रल उपग्रह उड़ान भरने को तैयार है जिसके साथ भारत उन्नत उपग्रह तकनीक के एक नए युग में कदम रखेगा। 30 विदेशी उपग्रहों का भी प्रक्षेपण
इसरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक आगामी 29 नवम्बर को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लांच पैड (एफएलपी) से इस उपग्रह का प्रक्षेपण विश्वसनीय धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी सी-43) से किया जाएगा।
इस मिशन के साथ 30 विदेशी उपग्रह भी भेजे जाएंगे जिसके लिए इसरो की वाणिज्यिक इकाई अंतरिक्ष कॉरपोरेशन लिमिटेड (एंट्रिक्स) ने विभिन्न एजेंसियों के साथ करार किया है। अभी 14 नवम्बर को ही जीएसएलवी मार्क-3 डी-2 से आधुनिक स्वदेशी संचार उपग्रह जीसैट-29 के प्रक्षेपण के बाद एक ही महीने में इसरो का यह दूसरा मिशन होगा।