मुंबई में हुए आतंककारी हमले के बाद राज्य सरकार ने एटीएस का गठन किया था। एटीएस को आंतरिक सुरक्षा प्रभाग (आईएसडी) का हिस्सा बनाया गया था और इसका प्रमुख अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी को बनाया गया था। एटीएस को राज्य में आतंकवाद विरोधी नोडल एजेंसी के तौर पर बनाया गया था लेकिन एटीएस को दिल्ली या मुंबई पुलिस के एटीएस की तरह प्राथमिकी दर्ज करने या गिरफ्तारी करने का अधिकार नहीं दिया गया। सरकार या पुलिस ने भी इस दौरान कोई मामला एटीएस को हस्तांतरित नहीं किया।
जानकारों का कहना है कि बेंगलूरु 90 के दशक से ही आतंककारियों के निशाने पर रहा है, जिसके कारण मुंबई हमले के बाद सरकार ने आनन-फानन में एटीएस का गठन कर दिया लेकिन उसे प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक अधिकार नहीं दिए। शक्तियों के अभाव में एटीएस में अधिकारियों की तैनाती भी सिर्फ रस्म अदायगी बन कर रह गई। एटीएस का काम सिर्फ सूचनाओं के संग्रहण तक सिमट कर रह गया। एटीएस देश की विभिन्न खुफिया एजेंसियों व अन्य पुलिस एजेंसियों से सूचनाएं तो एकत्र करती है लेकिन जब किसी मामले में कार्रवाई का मौका आता है तो उसमें एटीएस की कोई भूमिका नहीं होती है। शक्तियों के अभाव का आलम यह है कि आतंककारी गतिविधियों से जुड़े मामलों में मुंबई से आने वाली एटीएस या राष्ट्रीय एजेंसियों की टीम भी राज्य एटीएस से संपर्क नहीं साधती है। वे स्थानीय पुलिस या बेंगलूरु पुलिस के केंद्रीय अपराध शाखा से संपर्क करते हैं जिसके पास मामला दर्ज करने और गिरफ्तारी का अधिकार है।
जानकारों का कहना है कि राज्य स्तरीय एटीएस होने के बावजूद बेंगलूरु सहित पांच शहरों के लिए विशेष एटीएस के गठन को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है। राज्य स्तरीय एटीएस के तहत ही प्रमुख जिलों में इसकी यूनिट बनाई जाएगी या नगर पुलिस में इसकी अलग विंग होगी अथवा दोनों समानांतर काम करेंगे, इसे लेकर असमंजस बना हुआ है। प्रस्तावित शहर केंद्रित एटीएस के अधिकारों को लेकर भी अस्पष्टता की स्थिति है। हालांकि, पुलिस महानिदेशक नीलमणि राजू ने मार्च में कहा था कि सभी पांच पुलिस आयुक्त क्षेत्रों-बेंगलूरु, मैसूरु, हुब्बली-धारवाड़, बेलगावी और मेंगलूरु में एटीएस की यूनिट होगी।
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि दक्षिणी राज्यों में पांव पसारने की कोशिश करने वाले आतंककारी संगठनों पर कर्नाटक, खासकर बेंगलूरु निशाने पर है। आतंककारी संगठनों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सशक्त एटीएस की आवश्यकता है। पिछले पांच साल के दौरान राज्य से आतंककारी संगठन आईएसआईएस से सहानुभूति रखने के मामले में करीब डेढ़ दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इसके अलावा वद्र्धमान और बोधगया धमाकों के भी कई आरोपी राज्य से पकड़े गए। उत्तर-पूर्वी राज्यों में सक्रिय उग्रवादी संगठनों से जुड़े लोगों की भी कई बार गिरफ्तारी हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे भी बेंगलूरु में छिपे थे। ९० के दशक के बाद से शहर कई बार आतंककारी हमलों का शिकार हो चुका है। शहर के प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्था (आईआईएससी) में भी सम्मेलन के दौरान आतंककारी हमला हुआ था।
इसी सप्ताह राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) के अधिकारियों ने दक्षिणी राज्यों में बांग्लादेशी आतंककारी संगठन जमात-उल मुजाहिदीन (जेएमबी) के पांव पसारने और बेंगलूरु में 20-22 ठिकाने बनाने की बात कही थी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इसे देखते हुए सशक्त एटीएस होनी चाहिए।