मन की पूर्ण शुद्धि के लिए जरूरी हैं पुण्य कर्म
बैंगलोरPublished: Oct 16, 2019 05:01:05 pm
धर्मसभा में बोले आचार्य देवेन्द्र सागर
मन की पूर्ण शुद्धि के लिए जरूरी हैं पुण्य कर्म
बेंगलूरु. आचार्य देवेंद्रसागर ने कहा कि मन की मलिनता मनुष्य को पुण्य और दैवी संस्कारों से दूर ले जाती है। जो मनुष्य की सोच व कर्म आसुरी प्रवृत्ति की श्रेणी वाला होता है, वह कभी भी अच्छे कर्मों के बारे में नहीं सोच सकता है। ऐसे ही स्वभाव वाले लोग दूसरों को हमेशा कष्ट देकर पाप के भागीदार बनते हंै।
आत्मा और मन की शुद्धि मनुष्य के जीवन का दर्पण है। उन्होंने कहा कि आज के युग में यह सबसे बड़ी चुनौती है कि इस मलिनता वाले सुनामी में खुद को कैसे स्वच्छ रखें क्योंकि आज के युग में हवा से लेकर पानी और वातावरण चारों तरफ अंधविश्वास, अश्लीलता, अज्ञान, अंधकार, साम्प्रदायिकता, आतंकवाद की आंधी से प्रभावित है। व्यक्ति सद्मार्ग पर और स्वच्छता के मार्ग पर चलना चाहते हुए भी असमर्थ है। तूफान श्रेष्ठता के बजाए अनिष्ठकारी वेग के रूप में ज्यादा है। कुछ ऐसे लोग हैं जो इस रास्ते पर डटकर मुकाबला करते हुए चल रहे हैं परन्तु ऐसे लोगों की तादाद बहुत कम है। जाहिर सी बात है कि जो लोग ऐसे पथ के पथिक हैं उनके रास्तें में अड़चनें और मुश्किलों का अम्बार है। जिससे देखकर लोगों को भ्रम हो जाता है कि आखिर यह मार्ग सही है या गलत है। क्योंकि बुराइयों और मलिनता के बहाव में बहने वाला हर व्यक्ति अपने को सही और बेहतर बताने के लिए लगा रहता है।
पुण्य को बनाएं जीवन का आधार
भले ही आडम्बर और व्यर्थ कर्मों के साथ कुछ समय के लिए लोग खुद को सही मानते है परन्तु सत्य और पुण्य कर्म मनुष्य को हमेशा प्रभावित करते रहते हैं। यही वजह है कि विश्व में अपार धन दौलत वाले लोग भी आनन्द, स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए प्रयासरत हंै। ऐसे में जरूरी है कि हम आत्मा और मन की स्वच्छता के लिए पुण्य कर्म करें। पुण्य कर्म से ही हम सुखी होंगे और समाज को इसका लाभ मिलेगा।