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बेटा हुआ ब्रेन डेड तो पिता ने उसके दोनों हाथ भी किए दान

locationबैंगलोरPublished: Nov 20, 2018 08:07:00 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

प्रत्यारोपण के लिए पुदुचेरी भेजा गया हाथ
गुर्दा, हृदय, फेफड़ा, यकृत और कॉर्निया भी अन्य मरीजों के नाम

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बेटा हुआ ब्रेन डेड तो पिता ने उसके दोनों हाथ भी किए दान

बेंगलूरु. एक सड़क दुर्घटना के बाद उपचार के दौरान ब्रेन डेड बेटे के पिता ने उसके दोनों हाथों को भी दान कर मिसाल पेश की। चिकित्सकों के अनुसार कर्नाटक में हाथ दान का यह पहला मामला है।
प्रदेश में हाथ प्रत्यारोपण कार्यक्रम नहीं होने के कारण क्षेत्रीय अंगदान सहयोग समिति जीवसार्थकते ने हाथों को क्षेत्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (आरओटीटीव) को सौंपा ।

जिसके बाद आरओटीटीव ने इन हाथों को पुदुचेरी स्थित जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (जेआइपीएमइआर) भेजने का निर्णय लिया।
सोमवार दोपहर हाथों को जेआइपीएमइआर भेजा गया। जहां के चिकित्सक तमिलनाडु में 31 वर्षीय सेल्वी (परिवर्तित नाम) के शरीर में प्रत्यारोपित कर उसे नई जिंदगी देंगे। एक हादसे में सेल्वी के हाथ बुरी तरह कुचल कर खराब हो गए थे।
आनेकल निवासी 22 वर्षीय दाता विक्रम (परिवर्तित नाम)एक सड़क दुर्घटना में जख्मी हो गया था। 15 नवम्बर को उसे नारायण हेल्थ सिटी में भर्ती किया गया था।

विक्रम को बचाने के तमाम प्रयास विफल होने के बाद चिकित्सकों की टीम ने रविवार को उसे ब्रेन डेड घोषित किया। जिसके बाद विक्रम के पिता ने विक्रम का हृदय, फेफड़ा, दोनों गुर्दा, यकृत, हृदय वॉल्व और कॉर्निया के साथ हाथों को भी दान कर दिया।
विक्रम का हृदय अब मध्यप्रदेश की 18 वर्षीय सोनाली (परिवर्तित नाम) के शरीर में जिंदगी बन धड़क रहा है। नारायण हेल्थ सिटी के चिकित्सकों ने सोमवार को सोनाली के शरीर में इस नए हृदय को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया।
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. भगीरथ रघुरमन ने बताया कि हृदय की बीमारी डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी के कारण सोनाली का हृदय प्राकृतिक रूप से शरीर के अन्य हिस्सों तक रक्त पंप नहीं कर पा रहा था।
हृदय के लिए सोनाली के परिजनों ने जीवसार्थकते के पास इस वर्ष अगस्त में पंजीकरण करवाया था।विक्रम के यकृत ने बेंगलूरु के 67 वर्षीय सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को दूसरा जीवन दिया।

डॉ. संजय कुमार गोजा ने बताया कि यकृत के कैंसर से मौत से जिंदगी की जंग लड़ रहे मरीज के लिए यकृत प्रत्यारोपण ही अंतिम विकल्प था।
अंगदान की प्रतीक्षा सूची के अनुसार दोनों गुर्दा, फेफड़े और कॉर्निया और हृदय वाल्व को अन्य अस्पतालों को सौंपा गया।

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