गौ-माता जब सड़क पर उतरती हैं तो वाहन चालकों का हॉर्न बजाना कोई मायने नहीं रखता।
यातायात व्यवस्था जाए ठेंगे पर। इन्हें तो बस तफरीह करने से मतलब है।
दोपहिया, तिपहिया और चौपहिया हरेक वाहनों को रास्ता बदलवाने का माद्दा रखती है, इनकी फौज।
वाहनों चालकों ने हेकड़ी दिखाने की कोशिश की तो इनकी एक फुफकार, और तिरछी नजर अच्छे-अच्छों की हवा खराब कर सकती है।
अरे...अरे...रे रे रे...जरा अच्छे से चलिए, वरना लुढ़का ना जाएं।
भई! अब इनके लिए शहरों में चारागाह तो रहे नहीं। सड़क किनारे कचरे में ही मुंह मारना पड़ता है।
प्लास्टिक के सेवन से हर साल देश भर में हजारों गौवंश की अकाल मृत्यु हो जाती है।
कचरा निस्तारण न होना भी इस समस्या का बड़ा कारण है
Ram Naresh Gautam
हीरा नगरी पन्ना में पैदाइश, संगम नगरी प्रयागराज से पढ़ाई, बाबा नानक की कर्मनगरी सुल्तानपुर लोधी के जिला कपूरथला से मौजूदा कर्मक्षेत्र में कदम रखा जिसके कारण राम की वनवासकाल की प्रवासस्थली चित्रकूट के समीपी सतना सेे होते हुए हिमालय की गोद जम्मू के बाद आईटी सिटी बेंगलूरु में पड़ाव और वर्तमान में कुछ वर्षों से गुलाबी नगरी जयपुुर में ठहराव है...