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Alzheimer : ‘अपनों’ को भुला देता है अल्जाइमर, पर ‘अपने’ तो रखें याद

locationबैंगलोरPublished: Sep 21, 2019 05:01:20 pm

Submitted by:

Nikhil Kumar

सोचिए कि ताउम्र कड़ी मेहनत करने के बाद बुढ़ापे में कोई अपनी पहचान और याददाश्त खो दे। इन्हें जिंदगी और समाज का हिस्सा न मान समाज से काट दिया जाए। प्रेम से महरूम कर अपने हाल पर जीने-मरने के लिए विवश कर दिया जाए, तो कैसा होगा? जिन परिस्थितियों की कल्पना मात्र से ही हम सहम जाते हैं, शायद हममें से कई लोग दूसरों को इन्हीं परिस्थितियों में देखने या डालने से नहीं कतराते हैं। ज्यादातर मामलों में ये ‘दूसरे’ और कोई नहीं बल्कि हमारे ‘अपने’ ही होते हैं। अपनों को चाहिए कि वे पीडि़तों को कभी नहीं भूलें।

Alzheimer : 'अपनों' को भुला देता है अल्जाइमर, पर 'अपने' तो रखें याद

Alzheimer : ‘अपनों’ को भुला देता है अल्जाइमर, पर ‘अपने’ तो रखें याद

विश्व अल्जाइमर दिवस

सकारात्मक सामाजिक वातावरण निर्माण की जरूरत

बेंगलूरु. देश भर में Alzheimer के 40 लाख से भी ज्यादा पीडि़तों में से करीब 30,000 पीडि़त शहर में हैं। इनकी याददाश्त (Memory) फिर पूरी तरह से लौटेगी, इस बात की संभावना नहीं के बराबर है। मगर नियमित जांच और Medicines से बीमारी को एक बिंंदु पर रोका जा सकता है। मरीजों की स्थिति को सुधारा जा सकता है।

खूबसूरत पल भी धुल जाते हैं मस्तिष्क से

National Institute of Mental Health and Neurosciences (Nimhans) के पूर्व निदेशक डॉ. पी. सतीश चंद्रा बताते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ कई लोग जीवन के एक ऐसे पड़ाव पर आकर ठहर जाते हैं, जहां उनके जीवन के खूबसूरत पल तक मस्तिष्क से धुल जाते हैं। उपलब्धियां तो दूर, ये अपना नाम तक भूल जाते हैं। अल्जाइमर के Patiemt एक ऐसे भंवर में फंस जाते हैं, जहां वे चाहकर भी अपना नाम और रिश्तों को याद नहीं रख पाते हैं। अल्जाइमर के बारे में जागरूकता की कमी है। यह किसी को भी हो सकता है। अल्जाइमर एक बीमारी है, पागलपन नहीं। इसके मरीज बच्चों जैसे होते हैं। इनका विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। इन्हें समाज से काटने नहीं जोडऩे की जरूरत है।

वरिष्ठ Psychiatrist डॉ. ए. जगदीश बताते हैं कि अल्जाइमर का सटीक उपचार उपलब्ध नहीं है। लेकिन कुछ दवाएं इसे गंभीर होने से रोक सकती हैं। अल्जाइमर पीडि़तों के मस्तिष्क में एसिटाइल कोलिन (acetylcholine) की मात्रा कम पाई जाती है। इसलिए ऐसी दवाएं दी जाती हैं, जिससे Brain में एसिटाइल कोलिन का स्तर नियंत्रित रहे। जितनी जल्दी इस रोग के बारे में पता चलेगा, इसका उपचार उतना ही आसान होगा। अल्जाइमर मरीजों की देखभाल की बात करें तो विदेशों की तुलना में भारत काफी पीछे है। सामाजिक जागरूकता की कमी चिंता का विषय है।

मरीजों की बेहतर देखभाल के लिए हर जिला अस्पताल मुख्यालय में एक Memory Clinic की स्थापना, Dimensia पीडि़तों के लिए जिला स्तर पर डे केयर सुविधा, वृद्धाश्रमों में जिला स्तर पर डिमेंशिया प्रशिक्षण कार्यक्रम सहित प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों पर तैनात स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करने की जरूरत है।

लक्षणों की पहचान
– जरूरी चीजें भूलना, हाल में हुई घटनाएं।
– छोटी समस्याओं को भी ना सुलझा पाना।
– वस्तु का चित्र देखकर भी पहचान नहीं पाना।
– तारीख, महीना और साल तक भूल जाना।
– यह भी होश नहीं रहना कि कहा हैं।
– जोड़, घटाने में दिक्कत, गिनने मेंं परेशानी।
– चीजों को गलत जगह रख कर भूल जाना।
– काम शुरू कर भूल जाना कि क्या करना था।
– गुमसुम रहना, मेल-जोल बंद कर देना।
– अकारण ही बौखलाना, चिल्लाना या रोना।
– हर बात पर शक करना, आक्रामक होना।
– शिष्टाचार भूलना, अजीबोगरीब बातें करना।

 

अल्जाइमर के बारे में कुछ तथ्य
– अल्जाइमर डिमेंशिया का ही एक रूप है। पर दोनों में फर्क है। डिमेंशिया लक्षणों का समूह है, जबकि अल्जाइमर एक बीमारी है जो डिमेंशिया के लक्षणों का कारण है।
– 80 वर्ष की आयु के करीब 33 फीसदी और 85 वर्ष की आयु के करीब 60 फीसदी लोग डिमेंशिया से ग्रसित होते हैं। अल्जाइमर डिमेंशिया के मुख्य कारणों में से है।
– अल्जाइमर में Brain Cells का पारस्परिक संपर्क खत्म हो जाता है और वे मरने लगती हैं। मस्तिष्क में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए जरूरी रसायन कम होने लगते हैं।
– यह लगातार बढऩे वाला रोग है। मस्तिष्क का अधिक से अधिक भाग क्षतिग्रस्त होता जाता है और लक्षण ज्यादा गंभीर हो जाते हैं।
– माता-पिता या दूसरे रिश्तेदारों को अल्जाइमर है तो अगली पीढ़ी में इसकी आशंका बढ़ जाती है।
– बढ़ती उम्र की यह बीमारी अब युवाओं को भी चपेट में लेने लगी है। नींद की कमी, शराब सेवन, धूम्रपान, तनाव, खानपान और जीवनशैली में बदलाव प्रमुख कारण है।

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