ब्रह्मचर्य के पालन की अत्यधिक महत्ता है। सुवर्ण के मंदिर बनाना तथा रत्न की प्रतिमा बनाना भी आसान है, जबकि ब्रह्मचर्य का विशुद्ध पालन करना कठिन है। साधु जीवन में ब्रह्मचर्य के पालन के लिए नौ विशेष नियम बताए गए हैं। जिसमें आंखों पर लगाम एवं रसप्रद भोजन के त्याग पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि पाप का प्रवेश द्वार आंख है।
आंख से हम जो देखते हें, तुरंत ही मन उससे प्रभावित हो जाता है। आंख का मुख्य विषय है रूप। सुंदर रूप को देखते ही आंख ललचा जाती हे। जहां एक बार आंख चली गई वहां मन उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है।
मन में भगवान को लाना हो तो मन को मंदिर बनाना अत्यंत जरूरी है। जिसने मन को मंदिर बनाया है, उसी में परमात्मा का प्रवेश हुआ है।