नब्बे के दशक में तमिलनाडु तथा केरल की कई कंपनियों ने उपभोक्ताओं के भरोसे के लाभ उठाकर करोड़ों रुपयों की चपत लगाई।
ऐसा कोई मामला उजागर होता है तो संबंधित कंपनियों के खिलाफ जनमानस में आक्रोश फूटता है।
कुछ समय के बाद के पश्चात फिर लोग ऐसी कंपनियों में निवेश करने से पहले सोचते नहीं हैं। गत कई वर्ष से शहर में यह सिलसिला बरकरार है। उपभोक्ताओं का विश्वास हासिल करने के लिए ऐसी कंपनियों के मालिक सबसे पहले राजनेता तथा मशहूर कलाकारों का सहारा लेते हैं। कई बार धर्मगुरुओं की भी मदद ली जाती है।
अल्प समय में अधिक कमाई का मोह, इस समस्या की वास्तविक जड़ है। उपभोक्ता की इसी दुबर्लता का लाभ उठाते हुए कंपनियां बार-बार इसी दास्तां को दोहरा रही हैं। इस तरह मामले की करने वाले सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी बीबी अशोककुमार के मुताबिक ऐसे मामलों में निवेशकों के साथ न्याय करना, उनकी राशि को लौटाना आसान काम नहीं है।
कई चिट फंड कंपनियां तथा जमा राशि दो गुणा करने का लोभ दिखाकर उपभोक्ताओं को धोखा देनेवाली कंपनियों से उपभोक्ताओं को उनकी रकम दिलवा पाना टेढ़ी खीर है। ऐसे मामलों में न्याय के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है, लेकिन पर्याप्त सबूतों के अभाव में ऐसे मामले तार्किक अंत तक नहीं पहुंच पाते हैं।
ऐसे मामलों में अंत में उपभोक्ताओं से ही सहयोग नहीं मिलने से आरोपी छूट जाते हैं। लोगों को इन कंपनियों में निवेश करते समय कई बार सोचना चाहिए। ये कंपनियां भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों का उल्लंघन करती हैं।
लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए कुछ समय के लिए प्रति माह ब्याज भी दिया जाता है। फिर एक दिन कंपनी के सूत्रधार लापता हो जाते हैं। आइएमए धोखाधड़ी के शिकार की मौत
बेंगलूरु. आइएमए धोखाधड़ी का शिकार बने एक 54 वर्षीय व्यक्ति की गुरुवार को हृदयाघात से मौत हो गई। शहर के ओल्ड गुडहल्ली निवासी अब्दुल पाशा ने आइएमए में 8 लाख रुपए का निवेश किया था।
उन्होंने बेटी की शादी के मकसद से अपने जीवन भर की कमाई आइएमए में निवेश की थी लेकिन इस सप्ताह के आरंभ में जब आइएमए के बंद होने की खबर आई तब से पाशा परेशान थे।
इसी बीच, गुरुवार शाम अचानक वे विचलित हो गए और हृदयाघात के बाद घर में ही दम तोड़ दिया। परिवारजनों का कहना है अपनी जमा पूंजी आइएमए में गंवाने के कारण पाशा हताश हो गए।
संभवत: इसी कारण वे यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और हृदयाघात के कारण उनकी मौत हो गई।