16.43 बाद कक्षा में हुआ स्थापित
प्रक्षेपण के लगभग 16 मिनट 43 सेकेंड बाद रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 डी-2 उपग्रह जीसैट-29 उपग्रह को 190 किमी (पेरिगी) गुणा 35,975 किमी (एपोगी) वाली अंडाकार भू-स्थैतिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित कर दिया। इसरो की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जीटीओ में स्थापित किए जाने के बाद चरणबद्ध तरीके से तरल एपोगी मोटर फायर कर जीसैट-29 उपग्रह को स्थायी रूप से 55 डिग्री पूर्वी देशांतर में 36 हजार किमी गुणा 36 किमी (लगभग) वाली भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहां यह उपग्रह ऑपरेशनल होगा और 10 वर्षों तक देश को सेवाएं प्रदान करेगा।
प्रक्षेपण के लगभग 16 मिनट 43 सेकेंड बाद रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 डी-2 उपग्रह जीसैट-29 उपग्रह को 190 किमी (पेरिगी) गुणा 35,975 किमी (एपोगी) वाली अंडाकार भू-स्थैतिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित कर दिया। इसरो की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जीटीओ में स्थापित किए जाने के बाद चरणबद्ध तरीके से तरल एपोगी मोटर फायर कर जीसैट-29 उपग्रह को स्थायी रूप से 55 डिग्री पूर्वी देशांतर में 36 हजार किमी गुणा 36 किमी (लगभग) वाली भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा जहां यह उपग्रह ऑपरेशनल होगा और 10 वर्षों तक देश को सेवाएं प्रदान करेगा।
चंद्रयान-२ का प्रक्षेपण जीएसएलवी मार्क-3 से
दरअसल, चंद्रयान-2 मिशन पहले जीएसएलवी मार्क-2 से लांच करने की योजना थी जो ऑपरेशनल हो चुका है। लेकिन, नई योजना के मुताबिक चंद्र मिशन जीएसएलवी मार्क-3 से लांच किया जाएगा क्योंकि उसका वजन लगभग 600 किलोग्राम तक बढ़ चुका है। जीएसएलवी मार्क-3 की यह दूसरी विकासात्मक उड़ान है। पहली उड़ान में इस रॉकेट ने 3136 किलोग्राम वजनी संचार उपग्रह जीसैट-19 को कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित किया था।
दरअसल, चंद्रयान-2 मिशन पहले जीएसएलवी मार्क-2 से लांच करने की योजना थी जो ऑपरेशनल हो चुका है। लेकिन, नई योजना के मुताबिक चंद्र मिशन जीएसएलवी मार्क-3 से लांच किया जाएगा क्योंकि उसका वजन लगभग 600 किलोग्राम तक बढ़ चुका है। जीएसएलवी मार्क-3 की यह दूसरी विकासात्मक उड़ान है। पहली उड़ान में इस रॉकेट ने 3136 किलोग्राम वजनी संचार उपग्रह जीसैट-19 को कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित किया था।
इसरो का बाहुबली रॉकेट
नई पीढ़ी के इस रॉकेट का वजन 640 टन है और यह 4 टन वजनी संचार उपग्रहों को पृथ्वी की भू-अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 टन वजनी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा (लोअर अर्थ आर्बिट या एलईओ) में स्थापित करने की क्षमता रखता है जिसमें मानव युक्त अभियान भेजे जाते हैं। लेकिन, मानव मिशन लांच करने की क्षमता हासिल करने के लिए इस रॉकेट को कम से कम 10 लगातार सफल उड़ानें भरना जरूरी है। जीएसएलवी मार्क-3 इसरो द्वारा विकसित अन्य दो रॉकेटों पीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क-2 की तुलना में सबसे छोटा मगर सबसे भारी है। इसकी ऊंचाई 43.49 मीटर है जबकि पीएसएलवी की ऊंचाई 44 मीटर और जीएसएलवी मार्क-2 की ऊंचाई 49 मीटर है। लेकिन, यह तीनों में सबसे अधिक वजनी रॉकेट है। जहां पीएसएलवी (एक्सएल) का वजन 320 टन है वहीं जीएसएलवी मार्क-2 का वजन 414 टन है। इसरो का पहला रॉकेट एसएलवी-3 का वजन 17 टन था और वह 22.7 मीटर ऊंचा था जबकि एएसएलवी की ऊंचाई 23.5 मीटर और वजन 39 टन था।
नई पीढ़ी के इस रॉकेट का वजन 640 टन है और यह 4 टन वजनी संचार उपग्रहों को पृथ्वी की भू-अंतरण कक्षा (जीटीओ) और 10 टन वजनी उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा (लोअर अर्थ आर्बिट या एलईओ) में स्थापित करने की क्षमता रखता है जिसमें मानव युक्त अभियान भेजे जाते हैं। लेकिन, मानव मिशन लांच करने की क्षमता हासिल करने के लिए इस रॉकेट को कम से कम 10 लगातार सफल उड़ानें भरना जरूरी है। जीएसएलवी मार्क-3 इसरो द्वारा विकसित अन्य दो रॉकेटों पीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क-2 की तुलना में सबसे छोटा मगर सबसे भारी है। इसकी ऊंचाई 43.49 मीटर है जबकि पीएसएलवी की ऊंचाई 44 मीटर और जीएसएलवी मार्क-2 की ऊंचाई 49 मीटर है। लेकिन, यह तीनों में सबसे अधिक वजनी रॉकेट है। जहां पीएसएलवी (एक्सएल) का वजन 320 टन है वहीं जीएसएलवी मार्क-2 का वजन 414 टन है। इसरो का पहला रॉकेट एसएलवी-3 का वजन 17 टन था और वह 22.7 मीटर ऊंचा था जबकि एएसएलवी की ऊंचाई 23.5 मीटर और वजन 39 टन था।