एक अन्य मामले में 60 वर्षीय मां ने अपने इकलौते बेटे के ब्रेन डेड घोषित किए जाने पर फैसला किया कि वह उसके KIDNEY , liver and eyes दान करके उसे जीवित रखेंगी। उनके बेटे के अंगों को पांच जरुरतमंद मरीजों में Transplant कर दिया गया। मां कहती हैं, अब मेरा बेटा पांच और लोगों में जी रहा है। सवाल यह है कि हममें से कितने लोग ऐसा कर सकते हैं या कर पाएंगे क्योंकि हर 13वें मिनट में मानव अंगों की प्रतीक्षा सूची में एक नाम और जुड़ जाता है।
कर्नाटक की बात करें तो गुर्दा के 2,330 से ज्यादा मरीजों ने गुर्दा प्रत्यारोपण, 51 मरीजों ने heart प्रत्यारोपण, 795 मरीजों ने यकृत प्रत्यारोपण और 25 लोगों ने फेफड़े प्रत्यारोपण के लिए पंजीकरण करा रखा है।
बदलेगी तस्वीर अगर ऐसा हो सके तो…
सागर अस्पताल के गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव हीरेमठ के अनुसार अंगदान की दर को 0.08 से बढ़ाकर 1 प्रति दस लाख जनसंख्या के स्तर तक ले आया जा सके तो देश में जितने हृदय, लीवर और फेफड़ों की आवश्यकता है उनकी पूर्ति हो सकेगी। इससे किडनी की कमी भी कुछ हद तक दूर हो सकेगी। अगर Brain Death के कुल मामलों में से पांच प्रतिशत को भी काम में लाया जा सका तो हम हजारों लोगों की जान बचा सकेंगे। भारत में प्रतिवर्ष 20 हजार लीवर प्रत्यारोपणों की जरूरत है जबकि वास्तव में सिर्फ 200-300 लीवर प्रत्यारोपण हो पाते हैं।
रंग लाने लगी है प्रदेश सरकार की मुहिम
प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अधीन प्रदेश प्रत्यारोपण प्राधिकरण जीवसार्थकते विशेष परियोजना के तहत राज्य में अंगदान को बढ़ावा देने की मुहिम में जुटा है। 21 फरवरी 2017 को इसके अस्तित्व में आने के बाद से जागरूकता के साथ अंगदान को भी गति मिली है। गत दो वर्षों में करीब 150 ब्रेन डेड लोगों के परिजनों ने दूसरों को जिंदगी देने के लिए मृतकों के अंगों को दान कर मिसाल पेश की है।
प्रदेश स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवा निदेशालय में शिक्षा, सूचना व संचार विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. सुरेश शास्त्री ने बताया कि गत वर्ष जीवसार्थकते ने 82 ब्रेन डेड मरीजों के अंगदान में अहम भूमिका निभाई। जिसमें 33 हृदय, 11 फेफड़े, 75 यकृत, 118 गुर्दा, 34 हृदय वाल्व, 134 कॉर्निया, 4 त्वचा व दो हाथ शामिल हैं। जबकि गत वर्ष 18 हृदय, 4 फेफड़े, 61 यकृत, 106 गुर्दा, 4 त्वचा, 28 हृदय वाल्व, 112 कॉर्निया अंगदान के रूप में मिले।
पीछे हट जाते हैं 10 में से तीन
जीवसार्थकते के एक कर्मचारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ब्रेन डेड के परिजन कई बार अंगदान के बदले धन या job की मांग करते हैं। यह मांग अंगदान में सबसे बड़ी बाधा है। यह भी देखा गया है कि ज्यादातर मामलों में पीडि़त के दूर के परिजन अंगों के बदले धन या नौकरी के लिए नजदीकी परिजनों को उकसाते हैं। 10 में से तीन मामलों में अंगदान की इजाजत दे चुके परिजन तब पीछे हट जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि इसके बदले उन्हें कुछ नहीं मिल रहा है।
चौथे स्थान पर कर्नाटक
अंगदान को बढ़ावा मिले तो हजारों लोगों को बचाया जा सकता है। लेकिन अपेक्षित रूप से ऐसा हो नहीं पा रहा है। कैडेवर (ब्रेन डेथ) दान के मामलों में भारत विश्व के कई छोटे-छोटे देशों से भी काफी पीछे है। इस मामले में Telangana , Tamilnadu और Maharashtra के बाद कर्नाटक देश में चौथे स्थान पर है। यकृत रोग विशेषज्ञ डॉ. किशोर के अनुसार 80 फीसदी अंधविश्वास व धार्मिक कारणों से जबकि 40 फीसदी मामलों में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में विश्वास नहीं होने के कारण अंगदान को धक्का लग रहा है।
मस्तिष्क के मृत हो जाने के बाद भी शरीर के अन्य अंग कुछ समय तक काम करते रहते हैं
मणिपाल अस्पताल के अध्यक्ष डॉ. सुदर्शन बल्लाल कहते हैं कि वास्तव में देखा जाए तो अंग प्रत्यारोपण से कई जिंदगियां बचाई जा सकती है, क्योंकि मस्तिष्क के मृत हो जाने के बाद भी शरीर के अन्य अंग कुछ समय तक काम करते रहते हैं। लेकिन जागरुकता के अभाव और इस बारे में प्रचलित भ्रांतियों, धार्मिक अंधविश्वास तथा राज्य सरकार की उदासीनता की वजह से प्रदेश में इसे गति नहीं मिल पा रही है।