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गजप्रयाण : हाथियों का जत्था पैलेस के लिए रवाना

locationबैंगलोरPublished: Aug 23, 2019 11:20:12 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

ऐतिहासिक व अनूठी परंपरा देखने उमड़े पर्यटकमैसूरु दशहरा का आयोजन इस बार 29 सितम्बर से

गजप्रयाण : हाथियों का जत्था पैलेस के लिए रवाना

गजप्रयाण : हाथियों का जत्था पैलेस के लिए रवाना

बेंगलूरु. ऐतिहासिक मैसूरु दशहरा महोत्सव के लिए छह हाथियों का पहला जत्था गुरुवार को नागरहोले नेशनल पार्क के वीरण्णाहोसहल्ली से आलीशान मैसूरु पैलेस के लिए रवाना हुआ।
राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री आर. अशोक और वी. सोमण्णा ने परंपरा के मुताबिक हाथियों की पूजा कर जंगल से विदाई दी। यह अनूठी और एतिहासिक परंपरा ‘गजप्रयाण’ के नाम से जानी जाती है। ‘गजप्रयाण’ यानी, हाथियों के प्रस्थान के साथ ही मैसूरु दशहरा महोत्सव का औपचारिक आरंभ हो जाता है। यह महोत्सव इस बार 29 सितम्बर से मनाया शुरू होगा। मैसूरु दशहरा महोत्सव के दौरान 750 किलोग्राम वजनी ऐतिहासिक स्वर्ण हौदा उठाने वाले शक्तिशाली हाथी अर्जुन के नेतृत्व में हाथियों का जत्था जंगल से अपनी यात्रा पर निकला। हालांकि, पहले ऐसी परंपरा रही है कि 60 किमी लंबी यह यात्रा हाथी खुद तय करते थे। लेकिन, अब इसमें थोड़ा बदलाव आ गया है। पिछले 17 वर्षों से कुछ दूरी तय करने के बाद हाथियों को ट्रकों में लादकर मैसूरु पहुंचा दिया जाता है।
विजयनगर सम्राज्य से चली आ रही परंपरा
दशहरा उत्सव की शुरुआत पहले विजयनगर साम्राज्य से हुई थी, जिसे बाद में श्रीरंगपटट्ण स्थानांतरित कर दिया गया। उसके बाद मैसूरु के वाडियार राजवंश ने परंपरा जारी रखी। अब राज्य सरकार इस मेगा फेस्टिवल का आयोजन कराती है, जिसमें मूल परंपराओं और संस्कृति से कोई समझौता नहीं किया जाता है।
मंत्रोच्चार व लोक धुनों पर जीवंत हुआ माहौल
इससे पहले गजप्रयाण के लिए हाथी सज-धजकर तैयार हुए जिनपर सभी की निगाहें थीं। बड़ी संख्या में पर्यटक भी वीरण्णाहोसहल्ली पहुंचे। हाथियों का पारंपरिक स्वागत ‘पूर्णकुंभ’ हुआ। वैदिक मंत्रों के उच्चारण और पारंपरिक धुनों से वातावरण जीवंत हो उठा। इसके बाद हाथियों और समाज की सुरक्षा के लिए विशेष पूजा ‘गणेश अष्टधारा’ व विशेष प्रार्थनाएं हुईं। हाथियों को नारियल, गुड़ और गन्ना काफी मात्रा में चढ़ाए गए। इसके अलावा आदिवासी लोकनृत्य व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया।

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