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खुद पर प्रहार करते हैं कपट करने वाले

locationबैंगलोरPublished: Sep 22, 2018 10:53:13 pm

Submitted by:

Rajendra Vyas

हनुमंतनगर के जैन स्थानक में साध्वी सुप्रिया के प्रवचन

dharm aradhana

खुद पर प्रहार करते हैं कपट करने वाले

बेंगलूरु. वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ हनुमंतनगर के जैन स्थानक में साध्वी सुप्रिया ने माया कषाय पर विवेचना करते हुए कहा कि जो मायावी, छल-प्रपंच, दगा कपट करने वाले होते हैं, वे अपने गुणों पर, अपने आप पर प्रहार करते हैं। व्यक्ति को कभी भी धर्म, तप और सेवा में छल नहीं करना चाहिए। आपकी साधना भी तभी फलीभूत होगी जब आपका हृदय एकदम सरल, निश्चल पवित्र शुद्ध निर्मल होगा। भगवान महावीर ने माया को मित्रता का घात करने वाली बताया है। साध्वी ने कहा कि बिच्छू के द्वारा लगे डंक की पीड़ा तो इलाज से कुछ समय बाद शांत हो जाती है, लेकिन माया रूपी कांटे की पीड़ा जीवन भर रहती है। साध्वी सुमित्रा ने सागरदत्त चरित्र का वाचन करते हुए कहा कि पुण्यवान व्यक्ति जहां जहां जाता है उसकी पुण्यवाणी भी उसके साथ वहीं पहुंच जाती है। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म साधना में सजग रहता है तो कोई संकट विपत्ति भी आ जाए उस प्राणी की रक्षा होती है। साध्वी सुदीप्ति ने भजन प्रस्तुत किया। श्रावकों ने पाŸव पद्मावती साधना में एकासना तप की आराधना संपन्न की। संचालन युवाध्यक्ष राजेश गोलेच्छा ने किया।
कन्यादान की तरह करें दान
श्रवणबेलगोला. श्रवणबेलगोला के चामुंडाराय मंडप में आचार्य वर्धमान सागर के सान्निध्य में प्रज्ञासागर मुनि ने दसलक्षण महापर्व के अवसर पर कहा कि त्याग-धर्म का आध्यात्मिक अर्थ है। परिग्रह की निवृत्ति को त्याग कहा जाता है। आत्मा के विकारी भावों का परित्याग करने के लिए प्रयत्न करना एवं चौदह प्रकार के अंतरंग तथा दस प्रकार के बाह्य परिग्रह का त्याग करना अथवा अपेक्षा रहित ज्ञान दानादि का देना उत्तम त्याग धर्म है। प्रज्ञासागर मुनि ने कहा कि त्याग करना सभी के लिए संभव नहीं हो पाता, जिस तरह साधु संत त्याग करके रहते हैं, इस तरह श्रावक के लिए संभव नहीं है। इसलिए उनके लिए दान को रखा गया, जिसमें आहार दान, औषध दान, शास्त्र दान आदि दानों के द्वारा कुछ न कुछ त्याग कर श्रावक धर्म का पालन करना चाहिए। इसलिए दस धर्म में त्याग को तप के बाद रखा गया है। व्रत उपवास के साथ-साथ चार प्रकार के दान को भी करके त्याग धर्म को स्वीकार करना चाहिए। दान करने से पहले उत्तम पात्र की तलाश करो। उत्तम स्थान पर ही दान किया जाए। जब भी साधु को आहार देना उसके आचरण देख कर नहीं बल्कि चरण देख कर देना, नमन भी करना तो चरण देख कर करना न कि उनकी आचार्य परम्परा देखकर कि किस संघ का साधु है। दान छपा कर नहीं, बल्कि छिपा कर देना चाहिए। साध्वी विशाश्री ने भी त्याग पर भावना व्यक्त की।
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