कर्नाटक का रण: खंडित जनादेश में जद-एस के लिए आसान नहीं होगा सीएम पद की दावेदरी
– 2018 की तुलना में बदल चुका है सियासी परिदृश्य
बेंगलूरु. राज्य की राजनीति में संख्या बल के हिसाब से तीसरे स्थान पर रहने वाला जनता दल-एस खंडित जनादेश की स्थिति में कभी किंग बना तो कभी किंगमेकर की भूमिका रहा। मगर इस बार त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में जद-एस के लिए मुख्यमंत्री पद हासिल करना संभव नहीं होगा।
राजनीति जानकारों का कहना है कि यदि जद-एस 30 सीटों के आंकड़े को पार कर जाती है, तो किसी पार्टी को समर्थन के लिए जद-एस अपने नेता एचडी कुमारस्वामी को लेकर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश करने से पीछे नहीं हटेगी। हालांकि, 2018 की तरह इस बार जद-एस के लिए सत्ता की बागडोर संभालने की दावेदारी आसान नहीं होगी।
2018 में तत्कालीन कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल ने जद-एस के साथ कुमारस्वामी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने का समझौता किया। 224 में से 80 सीटों के साथ बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए 37 सीटों वाली क्षेत्रीय पार्टी को सत्ता की कमान सौंप दी थी। कुमारस्वामी दूसरी बार गठबंधन के सहारे मुख्यमंत्री बने। हालांकि, दोनों दलों के नेताओं के अंतर्कलह और आपसी खींचतान के कारण कुमारस्वामी की सरकार सिर्फ 14 महीने चली। अब आजाद कांग्रेस छोड़ चुके हैं और अहमद पटेल का नवंबर 2020 में निधन हो गया। प्रदेश कांग्रेस में भी स्थानीय नेतृत्व काफी मुखर है। ऐसे में प्रेक्षकों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में कांग्रेस का कौन सा नेता समझौता करने की पहल करेगा। कुछ विश£ेषकों का कहना है कि ऐसे में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे पहल कर सकते हैं और जद-एस के मुखिया और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा से बात कर सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा को समर्थन करने की स्थिति में भी जद-एस के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग करना आसान नहीं होगा। दोनों ही राष्ट्रीय दलों के नेता अपने बल पर बहुमत से सरकार बनाने का दावा करते रहे हैं। अगर बहुमत के लिए कुछ संख्या कम पड़ी तो पहली प्राथमिकता निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करना पहली प्राथमिकता होगी। हालांकि, 113 के जादुई आंकड़े से 10 सीटें कम होने की स्थिति में किसी भी दल को जद-एस का समर्थन लेना पड़ सकता है। विश्लेषकों का कहना है कि यदि जद-एस खंडित जनादेश में 30 से कम सीटें हासिल करती है, तो पार्टी एक ऐसे नेता को चुन सकती है, दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो, जैसे 2004 में एन. धरम सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि 2018 की बात अलग थी, इस बार स्थिति अलग है। उक्त नेता ने ख्ंाडित जनानेदश की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि अगर गठबंधन की स्थिति बनती भी है तो कांग्रेस ही सरकार का नेतृत्व करेगी। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता भी कहा कि हमें पूर्ण बहुमत की उम्मीद है और यदि गठबंधन की संभावना बनती भी है तो मुख्यमंत्री का पद दूसरे दल को दिए जाने के आसार काफी कम रहेंगे। हालांकि, जद-एस को उम्मीद है कि एक्जिट पोल अनुमानों के विपरीत उसे ज्यादा सीटें मिलेगी और सियासी तौर पर अपनी शर्त मनवाने की स्थिति में होगी।
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