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जीवन जीने की शैली बदलो

locationबैंगलोरPublished: Nov 17, 2018 05:39:58 am

गुंडलपेट स्थानक में आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए साध्वी साक्षी ज्योति ने जीवन जीने की चार कलाओं का विवेचन करते हुए कहा कि प्रथम हमारा आहार शुद्ध होना चाहिए।

जीवन जीने की शैली बदलो

जीवन जीने की शैली बदलो

बेंगलूरु. गुंडलपेट स्थानक में आयोजित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए साध्वी साक्षी ज्योति ने जीवन जीने की चार कलाओं का विवेचन करते हुए कहा कि प्रथम हमारा आहार शुद्ध होना चाहिए। आहार सात्विक और शाकाहारी होना चाहिए। गरिष्ठ व मिर्च मसालों का न हो। दूसरा विचार शुद्ध हों। जब खानपान शुद्ध सात्विक होगा तो विचार भी शुद्ध होगा। भोजन का विचारों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। तीसरा वाणी का, हमारी सारी खुशियां सारे सुख बोलने में समाहित हैं।


अगर हम मधुर व शिक्षाप्रदा वाणी का उपयोग करते हैं तो पराए भी अपने बन जाते हैं। अगर हमारा आचार भोजन व विचार शुद्ध होंगे तो उच्चारण स्वत: ही शुद्ध प्रियकारी बन जाएगा। विचारों में परिवर्तन आया तो व्यवहार में भी आ जाएगा। शुद्ध विचारों का आदान प्रदान सुखी जीवन व खुशहाल जीवन की सौगात लेकर आता है। जिसने जीने की कला सीख ली उसे पंडित मरण की प्राप्ति हो जाती है। संचालन आनन्द गन्ना ने किया।

मलैमहादेश्वर भवन का शिलान्यास
मैसूरु. लश्कर मोहल्ला के कुम्हारगेरी स्थित मलैमहादेश्वर मंदिर में आयोजित सात दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने शिरकत की। पंडित ने विधि विधान से पूजा अर्चना करा आशीर्वाद दिया। शिवण्णा, मैसूरु शहर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष ध्रुव कुमार, हेब्बाल चन्द्र, मनीष मुणोत, भोपाराम देवासी, नरसिम्हराम देवासी, बलाराम देवासी ने पूर्व मुख्यमंत्री का पुष्पहार व मैसूरु पेटा पहनाकर सम्मान किया। मलैमहादेश्वर भवन का शिलान्यास किया गया। एम.एस. रवि, चन्द्रशेखर आदि उपस्थित रहे।

तप त्याग के साथ मनाया स्वामी चांद स्मृति दिवस
बेंगलूरु. जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में शुक्रवार को महावीर धर्मशाला में आयोजित धर्मसभा में जयधुरंधर मुनि ने कहा कि जहां दो होते हैं वहां टकराव होता है। दो बर्तनों के टकराने की आवाज आती है। दो बादलों के आपस में भिडऩे से गर्जना होती है। दो पत्थरों को रगडऩे से अग्नि पैदा होती है। दो गाडिय़ों के टकराने से हादसा हो जाता है। इन सब प्रकार के टकराव से बचने के लिए ‘आत्मवत सर्वभूतेषु’ का सिद्धांत अपनाते हुए साधक केवल अपनी आत्मा को ही अपना मानता है।

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