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सत्य सूर्य बनकर अवतरित हुए आचार्य

locationबैंगलोरPublished: Sep 23, 2018 06:06:49 pm

Submitted by:

Ram Naresh Gautam

साध्वी मंजूरेखा ने कहा कि आचार्य भिक्षु की प्रज्ञा महान थी

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सत्य सूर्य बनकर अवतरित हुए आचार्य

बेंगलूरु. तेरापंथ सभा के तत्वावधान में गांधीनगर तेरापंथ भवन में साध्वी कंचनप्रभा, साध्वी मंजूरेखा के सान्निध्य में शनिवार को आचार्य भिक्षु का 216वां चरमोत्सव आयोजित किया गया। महामंत्रोच्चार व भिक्षु अष्टकम संगान से शुरू हुए कार्यक्रम में साध्वी कंचनप्रभा ने कहा कि जिनका लक्ष्य महान होता है, जो दृढ़ संकल्पी होते हैं तथा जिनका मजबूत मनोबल होता है वे महापुरूष विश्व पटल पर अभिनव चिंतन के साथ नया आदर्श प्रस्तुत कर अमर हो जाते है।
साध्वी कंचनप्रभा ने कहा किआचार्य भिक्षु भगवान महावीर की वाणी पर सर्वात्मना समर्पित थे। वे सत्य सूर्य बन आए। प्रतिस्त्रोत में चले लेकिन यथार्थ तत्त्व जनता के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए सदा निर्भिक रहे। साध्वी मंजूरेखा ने कहा कि आचार्य भिक्षु की प्रज्ञा महान थी। वे महावीर वाणी के आलोक दीप बन कर जगमगाते रहे।
साध्वी उदितप्रभा, साध्वी निर्भयप्रभा, साध्वी चेलनाश्री, उगमराज लोढ़ा,तेयुप के नीतेश कोठारी ने भी आचार्य भिक्षु के जीवन प्रंसगों पर विचार रखें। साध्वीवृन्द तथा समणी ने श्रद्धासिक्त भाव संपूरित गीत का संगान किया। सभा उपाध्यक्ष कैलाश बोराणा ने स्वागत किया। संचालन सभा के सहमंत्री सम्पत चावत ने किया। आभार सहमंत्री संजय बांठिया ने जताया।

कारुणिक संत थे आचार्य जयमल
बेंगलूरु. विजयनगर स्थानक में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि अवनी पर चंदन शीतल है, चंदन से चंद्र की चांदनी शीतल है। चंद्र की चांदनी से संत का जीवन शीतल है। संसार में पशुओं से साधारण मनुष्य श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा कि साधारण मनुष्य से विद्वान श्रेष्ठ है। विद्वानों से संत की विद्वता श्रेष्ठ है। ऐसे ही संतो की लड़ी की कड़ी में शामिल है जो एक ऐसे ही तपोनिष्ठ साधक ध्यान योगी और परम कारुणिक संत थे आचार्य जयमल, जिन्होंने अपना जीवन इसी महापथ को समर्पित कर दिया था। साध्वी ने आचार्य के जीवनवृत पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी वाणी जो भी सुनता उनकी ओर खींचा चला आता था।
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