मोबाइल फोन ने पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है। कुछ पैसों में बात हो जा रही है। इतना भी नहीं हुआ तो मैसेज भेज दिया जाता है। कम पैसे में काम हो जाता है। अब तो पोस्टकार्ड से पत्र आते ही नहीं। मोबाइल का बटन दबाते ही देश के किसी भी कोने में बैठे परिजनों से बात हो जा रही है। दशक भर के भीतर ही सूचना संचार का इतना विकास हुआ कि जन-जन तक मोबाइल फोन की सुविधा उपलब्ध हो गई है। चिट्ठी लिखने की नौबत नहीं आती है। अंतर्देशीय या पोस्टकार्ड तो अब किसी-किसी के बैग में ही एकाध मिलते हैं। वह भी किसी की नोटिस रहती है अथवा किसी का बुलावा पत्र।
डाक विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि दशक से पत्रों की खिला पढ़ी बंद सी हो गई है। अंतर्देशीय व पोस्टकार्ड की बिक्री बंद सी हो गई है। दूर से दूर इलाके में बैठे लोगों से बात जब चाहते हैं, हो जा रही है। मोबाइल फोन से डाक विभाग पर असर पड़ा है। एक डाकिया ने बताया कि अब तो उसके बैग में पोस्टकार्ड खोजे नहीं मिलते। रजिस्ट्री पत्र यदि न रहे तो हाथ ही खाली होकर रह जाए। सब कुछ ऑन लाइन हो गया है।
नगर निवासी राधेलाल यादव 60 वर्षीय का कहना है कि उनके समय में तो आज की तरह न तो मोबाइल था और न ही टेलीफोन की सुविधा। डाक का ही सहारा रहता था। हर किसी की नजर डाकिया पर रहती थी। लोग बड़े ही आदर भाव से उसे बुलाते थे और पूछते थे कि क्या कोई उनके लिए भी पत्र है। बाहर रहने वाले लोग भी चिट्ठी-पत्री लिखकर अपना हाल चाल बयां करते थे।