पांच महीने पहले जमा किया गया था प्रतिवेदन
मामले में जनपद कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार पांच महीने पहले एसडीएम दफ्तर में जांच प्रतिवेदन पहुंच गया था। आपको बताते चले कि तत्कालीन जनपद सीईओ विनय अग्रवाल ने जांच करवाकर मामले की रिपोर्ट एसडीएम कार्यालय को मई में ही भेज दी थी। वहीं, जांच रिपोर्ट मिलने के बाद एसडीएम कार्यालय से आरईएस के एसडीओ को 30 जुलाई को निर्देशित किया गया कि मामले में 7 दिनों के अंदर जांच कर रिपोर्ट कार्यालय के सामने प्रस्तुत किया जाए। वहीं मामले में आरईएस के एसडीओ, एसडीएम के निर्देश को ठंडे बस्ते में डालकर पुन: जांच करना ही भूल गए। स्थिति यह है कि आदेश होने के तीन महीने बीत जाने के बाद भी एसडीओ को एसडीएम के आदेश की कोई परवाह नहीं है। वहीं, एसडीओ द्वारा एसडीएम के निर्देश की अवहेलना करने के बाद यहां साफ हो गया है कि आरईएस एसडीओ को एसडीएम का निर्देश सिर्फ कागज का टुकड़ा नजर आता है। वहीं, अधिकारियों के प्रशासनिक कसावट के दावों की पोल भी ऐसी स्थिति को देखकर खुल जाती है।
रोजगार सहायक पर हो चुकी है कार्रवाई
यहां बताना लाजमी होगा कि शौचालय की राशि में बंदरबांट किए जाने के साथ ही मनरेगा के कार्यों में लापरवाही बरतने को लेकर कोदोभाठा के रोजगार सहायक बेलचंद यदु को पहले ही जिला पंचायत सीईओ ने बर्खास्त कर दिया है। वहीं, मामले में रोजगार सहायक पर कार्रवाई तत्काल आनन-फानन में कर दी गई, लेकिन जिम्मेदार सरपंच और सचिव पर कार्रवाई नहीं किए जाने से उनके हौसले बुलंद हो गए हैं। जांच प्रतिवेदन सौंपे करीब पांच महीने हो चुके हैं, लेकिन आज तक मामले में उचित कदम नहीं उठाया जाने से एक बार फिर जिम्मेदार जांच अधिकारियों के साथ ही मामले में कार्रवाई करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा होने लगा है।