कलम थामने वाले हाथ में झाड़ू
६ हजार शिक्षाकर्मियों के साथ ही जिले के लगभग १३०० सफाईकर्मियों के भी हड़ताल में जाने से स्कूल में बच्चों की मुश्किलें बढ़ गई है। स्कूल के ताले तो जरूर ख्ुाले लेकिन उनकी हाथ में कलम की जगह कहीं झाड़ू तो कहीं पोछा का कपड़ा था। यही हाल जिले के सभी स्कूलों का है। शिक्षकों के स्कूल में नहीं होने के कारण कई बच्चे स्कूल से बाहर तालाबों में मछली पकड़ते या फिर गांव की गलियों में घूमते रहे।
६ हजार शिक्षाकर्मियों के साथ ही जिले के लगभग १३०० सफाईकर्मियों के भी हड़ताल में जाने से स्कूल में बच्चों की मुश्किलें बढ़ गई है। स्कूल के ताले तो जरूर ख्ुाले लेकिन उनकी हाथ में कलम की जगह कहीं झाड़ू तो कहीं पोछा का कपड़ा था। यही हाल जिले के सभी स्कूलों का है। शिक्षकों के स्कूल में नहीं होने के कारण कई बच्चे स्कूल से बाहर तालाबों में मछली पकड़ते या फिर गांव की गलियों में घूमते रहे।
विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में
इधर बेमेतरा के साजा में भी हर बार की तरह इस साल भी शिक्षाकर्मियों ने वार्षिक परीक्षा शुरू होने के दो माह पहले हड़ताल शुरू करके विद्यार्थियों के भविष्य प्रति लापरवाही का फिर से परिचय दिया है। वहीं शासन के साथ-साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी भी आंदोलन की चेतावनी मिलने के बाद भी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए। शिक्षाकर्मियों द्वारा हर साल आंदोलन करने के बावजूद इस समस्या का स्थाई हल नहीं निकाला गया। इन सभी में मात्र सरकारी स्कूल में अध्ययनरत विद्यार्थियों की पढ़ाई ही प्रभावित होती है।
इधर बेमेतरा के साजा में भी हर बार की तरह इस साल भी शिक्षाकर्मियों ने वार्षिक परीक्षा शुरू होने के दो माह पहले हड़ताल शुरू करके विद्यार्थियों के भविष्य प्रति लापरवाही का फिर से परिचय दिया है। वहीं शासन के साथ-साथ शिक्षा विभाग के अधिकारी भी आंदोलन की चेतावनी मिलने के बाद भी वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए। शिक्षाकर्मियों द्वारा हर साल आंदोलन करने के बावजूद इस समस्या का स्थाई हल नहीं निकाला गया। इन सभी में मात्र सरकारी स्कूल में अध्ययनरत विद्यार्थियों की पढ़ाई ही प्रभावित होती है।
इन मांगों को लेकर शिक्षाकर्मी कर रहे हड़ताल
एक ओर शासन शिक्षा गुणवत्ता अभियान चलाता है, जनप्रतिनिधि व अधिकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर जांचने के लिए पहुंचते हैं। ए से लेकर सी ग्रेड तक स्कूलों की ग्रेडिंग करके सुधार का दिखावा किया जाता है। लेकिन वास्तव में सुधार नहीं होता। शिक्षाकर्मियों की प्रमुख मांग है कि समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।
शासन पर मढ़ रहे दोष : शिक्षाकर्मियों का कहना है कि उन्होंने मजबूरी में आकर हड़ताल का रास्ता अपनाया है। उन्हें बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने का अफसोस भी है। लेकिन इस कदम को वे अनिवार्य मान रहे हैं।
एक ओर शासन शिक्षा गुणवत्ता अभियान चलाता है, जनप्रतिनिधि व अधिकारी स्कूलों में पढ़ाई का स्तर जांचने के लिए पहुंचते हैं। ए से लेकर सी ग्रेड तक स्कूलों की ग्रेडिंग करके सुधार का दिखावा किया जाता है। लेकिन वास्तव में सुधार नहीं होता। शिक्षाकर्मियों की प्रमुख मांग है कि समान कार्य के लिए समान वेतन मिले।
शासन पर मढ़ रहे दोष : शिक्षाकर्मियों का कहना है कि उन्होंने मजबूरी में आकर हड़ताल का रास्ता अपनाया है। उन्हें बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने का अफसोस भी है। लेकिन इस कदम को वे अनिवार्य मान रहे हैं।
प्रायवेट स्कूलों की तरफ बढ़ रहा पालकों का रूख
उनका मानना है कि बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने का असली कारण शासन का अडि़य़ल रवैया है। शिक्षाकर्मियों के अनुसार जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाएगी वे हड़ताल जारी रखेंगे। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी, सुविधाओं की कमी होने के साथ-साथ शिक्षाकर्मियों द्वारा पढ़ाई में रुचि नहीं लेने का खामियाजा विद्यार्थियों को हर बार भुगतना पड़ता है। यह वजह है कि ज्यादातर पालक प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मुनासिब समझते हैं।
उनका मानना है कि बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने का असली कारण शासन का अडि़य़ल रवैया है। शिक्षाकर्मियों के अनुसार जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाएगी वे हड़ताल जारी रखेंगे। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी, सुविधाओं की कमी होने के साथ-साथ शिक्षाकर्मियों द्वारा पढ़ाई में रुचि नहीं लेने का खामियाजा विद्यार्थियों को हर बार भुगतना पड़ता है। यह वजह है कि ज्यादातर पालक प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मुनासिब समझते हैं।