१९ में शादी, २० में हुआ तलाक, पर नहीं हारा हौंसला
बालाघाटPublished: Sep 27, 2017 08:46:37 pm
परित्यक्ता महिलाएं तब्बसुम और अमिता ने दिखाई नई राह
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बालाघाट. कुछ लोगों के लिए जीवन खुशियों की आसान राह पर चलने वाला सफर होता है। लेकिन कुछ लोगों के लिए जीवन की राह कठिन संघर्षों से भरी होती है और उनकी राह पर काटें ही काटें होते है। हिम्मत और मन मे कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो विपरित परिस्थितियों को अनुकूल बनाया जा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है तब्बसुम खान और अमिता धुवारे ने। इन महिलाओं ने अपने कठिन संघर्ष से सफलता हासिल कर समाज को भी नई राह दिखाई है।
वर्ष २००५ में हुई थी शादी
जानकारी के अनुसार इंदिरा नगर बालाघाट निवासी तब्बसुम खान (३०) का जीवन बहुत उतार चढ़ाव से भरा रहा है। गरीब परिवार में जन्मी तब्बसुम के पिता अतिक खान मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करते थे। तब्बसुम की 12 वीं तक की पढ़ाई होने के बाद 19 वर्ष की आयु में 11 अप्रैल 2005 को उसका निकाह कर दिया गया था। उसका पति पढ़ा लिखा नहीं था। जिसके कारण उसकी सोच रूढ़ीवादी ही बनी रही और वह तब्बसुम को दहेज के लिए प्रताडि़त करने लगा। तब्बसुम रोज की प्रताडऩा से तंग आ गई और उसने आत्महत्या करने का मन बना लिया। उसने आत्म हत्या करने के पहले अपनी मां को चि_ी लिखकर सारी समस्या से अवगत कराया।
वर्ष २००६ में हुआ तलाक
तब्बसुम की मां ने बेटी की चिट्ठी को पढ़ा तो उसके भी होश गुम हो गए। उसकी मां ने हिम्मत कर उसे ससुराल से अपने घर ले गई। जिसके बाद जनवरी 2006 में उसका तीन तलाक के माध्यम से तलाक हो गया। 20 वर्ष की आयु में तलाक हो जाना तब्बसुम के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं था। तलाक के बाद उसने मन बनाया कि वह अपनी पढ़ाई को पूरा करेगी और कुछ करके दिखाएगी। तब्बसुम ने उसे शादी में मिले सामान को बेचकर अपनी पढ़ाई की फीस का इंतजाम किया। वर्ष 2008 में प्रायवेट से बीए कर लिया। स्नातक होने के बाद वर्ष 2009 में उसका आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर चयन हो गया। कार्यकत्र्ता के मानदेय से उसका काम अब कुछ आसान हो गया था। अपनी मां के साथ रहते हुए उसने एमए कर लिया है। महिला बाल विकास विभाग की पर्यवेक्षक दीपिका चौहान, अनामिका जैन व कामना वर्मा के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर तब्बसुम ने भी महिला पर्यवेक्षक बनने का दृढ़ संकल्प कर लिया। आखिर उसकी मेहनत सफल हुई। व्यापम की परीक्षा में सफल होकर उसका चयन आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक के पद पर हो गया है।
अमिता की भी ऐसी ही है कहानी
ऐसी ही कुछ कहानी भटेरा चौकी बालाघाट की निवासी अमिता धुवारे की है। अमिता वर्ष 2011 से आंगनबाड़ी कार्यकत्र्ता के रूप में कार्य कर अपने परिवार के लिए गुजारे का सहारा बन गई थी। गरीब परिवार की अमिता का 28 अप्रैल 2015 को विवाह हुआ था। लेकिन विवाह के बाद पति से निभ न सकी और विचारों में मतभेद होने के कारण उसे पति से अलग होना पड़ गया। पति से अलग होने के बाद उसने एमए किया और अपने पैरों पर खड़े होने का निश्चय किया। कहते है कि जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है। उसने जीवन में सफल होने की इच्छा से लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लिया और व्यापम की परीक्षा में आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक के लिए चयनित हो गई है। तब्बसुम खान और अमिता धुवारे ने कठिन संघर्ष के बाद सफलता हासिल की है। उनकी यह सफलता महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरणा देने वाली है। तलाक के बाद महिलाओं का जीवन अंधकारमय हो जाता है। लेकिन इन महिलाओं ने दिखाया है कि संघर्ष की सफलता की सीढ़ी है।