भटकना पड़ता है
पत्रिका टीम दक्षिण बैहर क्षेत्र के वनग्राम कुआगोंदी पहुंची। ग्रामीणों ने बताया कि विकास के नाम पर सड़क बन पाई है। सड़क से न तो पेट भरता है और न ही जीवन चलता है। कोई अधिकारी, नेता रोजगार नहीं देता। रोजगार की तलाश में भटकना पड़ता है। काम करने से ही पैसा आता है और उससे दो वक्त की रोटी का जुगाड़ होता है।
गांव में नहीं सुनाई दिया चुनावी शोर
चुनावी शोर शहरी क्षेत्र तक सिमटा रहा। प्रचार से आदिवासी अंचल के ग्राम अछूते रहे। कुआगोंदी गांव में कोई भी प्रत्याशी प्रचार करने नहीं पहुंचा। वनोपज से होती है आमदनी
ग्रामीणों का कहना है कि वनोपज से उन्हें काफी आमदनी हो जाती है। अभी महुआ का सीजन है। ज्यादातर ग्रामीण फूल चुनने के लिए परिवार के साथ जंगल चले जाते हैं। सुबह से दोपहर तक गांव में गिने- चुने लोग रहते हैं। इसके बाद तेंदूपत्ता का सीजन आता है। पत्ते तोड़कर कुछ आमदनी और हो जाती है।
क्या कहते हैं ग्रामीण
-मतदान तो करूंगा, लेकिन चुनाव किस चीज का है इसकी जानकारी नहीं है। हम रोज मजदूरी करने के लिए निकल जाते हैं। सब्जी के खेत में काम करते हैं। वहां कुछ पैसे मिल जाते हैं।- ऋषि मेरावी, ग्रामीण -गांव में रोजगार नहीं मिलता। रोजाना संघर्ष करते हैं। चुनाव के बारे में कोई जानकारी नहीं है। गांव में कोई भी चुनाव प्रचार करने नहीं आया है। मतदान करने अवश्य जाएंगे। सुकवारो बाई, ग्रामीण
-हमारे पास न तो धन है न दौलत और न ही भूमि। सरकार रोजगार नहीं देती। दिनभर काम करते हैं, तब जाकर पैसे मिलते हैं। जिनसे हम अपना और परिवार का जीवन-यापन करते हैं। बीरसिंह, ग्रामीण
-गांव-गांव मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। शतप्रतिशत मतदान के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान को लेकर फोकस किया गया है। डीएस रणदा, जिला पंचायत सीईओ