बता दें कि माध्यमिक शिक्षा परिषद की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा में प्रतिवर्ष जिले के ढाई से पौने तीन लाख के बीच परीक्षार्थी भाग लेते है। गत वर्ष यूपी बोर्ड परीक्षा में 2,62,728 परीक्षार्थी भाग लिए थे। इसमें हाईस्कूल के 1,49,166 परीक्षार्थी जिसमें बालक 92,270 तथा बालिका 56,896 व इण्टरमीडिएट में 1,13,562 परीक्षार्थी जिसमें बालक 61,417 तथा बालिका 52,145 परीक्षार्थी शामिल हुए थे।
इस बार भी करीब इतने ही विद्यार्थियों के परीक्षा में शामिल होने की संभावना है। लेकिन इस बार इन्हें शिक्षा पर अधिक खर्च करना होगा। कारण कि यूपी बोर्ड ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा फीस ढाई गुना तक बढ़ा दी है। फीसवृद्धि का आदेश सचिव नीना श्रीवास्तव ने बुधवार को जारी किया। पहले हाईस्कूल व इंटरमीडिएट संस्थागत (रेगुलर) विद्यार्थी क्रमशः 200 व 220 रुपये फीस देते थे लेकिन अब 2020 की परीक्षा के लिए उन्हें क्रमशः 500 व 600 रुपये देने होंगे।
इसी तरह हाईस्कूल व इंटर व्यक्तिगत (प्राइवेट) विद्यार्थी पहले क्रमशः 300 व 400 रुपये फीस देते थे लेकिन अब उन्हें क्रमशः 700 व 800 रुपये देना होगा। 10वीं व 12वीं के अतिरिक्त विषय की परीक्षा फीस में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह पूर्व की तरह 200 रुपये ही ली जाएगी। इसे गरीब परिवारों पर बड़ा बोझ माना जा रहा है। इस मामले में समाजसेवी एसके सत्येन, अखिलेश कुमार सिंह, संतोष गुप्ता, अनिल जायसवाल, नायब यादव, सर्वेश जायसवाल आदि का कहना है कि फीस में थोड़ी बहुत वृद्धि होती तो समझ में आती लेकिन इस तरह एकाएक ढाई गुना फीस बढ़ाना जनविरोधी फैसला है। गरीब के लिए शिक्षा और मुश्किल हो जाएगी। परिषद को यह फैसला वापस लेना चाहिए।