छात्र कौशल कुमार शुक्ल ने उन्हें सजगता का प्रखर वक्ता तथा साहित्यक और समाज के बीच विचार की जटिलत परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर सेतु बनकर अभिव्यक्ति को नया आयाम देने वाला बताया। परिषद के अध्यक्ष पंडित जनमेजय पाठक ने कहा कि प्रोफेसर नामवर सिंह अपने चिंतन में समसामयिक जीवन विकास हेतु समस्त साहित्य के अनुभव खंडों से आगे बढ़कर जीवित व्यक्ति के गुणात्मक अभिव्यक्ति को दर्शाने का मार्ग प्रशस्त किया व वर्तमान के सांस्कृतिक अर्थवत्ता को सुदृढ़ करने और जीवन विकास में ओझल हो चुके यर्थाथग्राही विचारों के पक्षधर रहे। कटुता, व्यंग और विरोधाभाष से अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण को स्वतंत्र रूप से नीतियुक्त होकर प्रबुद्ध करने के लिए बौद्धिक क्षमता प्रदान कराये।
डा. अखिलेश चंद्र ने कहा कि चन्दौली के जीयनपुर में जन्म लिये प्रोफेसर नामवर सिंह ने उदय प्रताप कालेज वाराणसी व BHU के छात्र रहकर वहीं पर अध्यापन कार्य किये। उनके निधन से साहित्यिक जगत को अपूर्णनीय क्षति हुई है। डा. गीता सिंह ने डा नामवर को आलोचना क्षेत्र को दक्ष मर्मज्ञ बताया। छायावाद, कहानी की कहानी, कविता के नये प्रतिमान, इतिहास और आलोचना आदि साहित्यिक सृजन करके हिन्दी साहित्य को समृद्धशाल बनाने का कार्य किये है। अंत में उनकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखकर ईश्वर से प्रार्थना कर उन्हें नमन किया। गोष्ठी में प्रमोद कुमार, सूर्यनाथ, रविराय, विमल श्रीवास्तव, विष्णुशरण, अम्ब्रीश त्रिपाठी, विजय देव सिंह सहित आदि मौजूद रहे।